अन्नदाता बने सबल: पंचगव्य पद्धति से खाद बना जमीन को बना रहे हैं उपजाऊ
स्वस्थ समाज पंचगव्य पद्धति से खाद बना जमीन को बना रहे हैं उपजाऊ। नितिन के प्रयास से बदली गोविंदपुर गांव की तस्वीर।
कोलकाता, प्रकाश पांडेय। अब अशोक महतो और कार्तिक महतो के बच्चे स्कूल जाते हैं। परिवार के लोग भर पेट भोजन करते हैं। पूरे दिन खेत में काम करने के बाद देर शाम जब अशोक अपने बच्चों के मुंह से अंग्रेजी की कविताएं सुनते हैं तो उनकी थकान मिट जाती है। आज से पांच साल पहले स्थिति ठीक इसके विपरीत थी। बामुश्किल रोटियां जुटती और किसी तरह से रोटी की व्यवस्था हो भी गई तो अन्य जरूरतें राम भरोसे। पश्चिम बंगाल के जनपद झाड़ग्राम के पाटाफिमूल पंचायत क्षेत्र के ग्राम गोविंदपुर में ऐसे कई किसान हैं, जिनकी स्थिति कभी बेहद दयनीय थी। लेकिन कोलकाता निवासी आर्य नितिन के प्रयास ने इस गांव के बेजार चेहरों पर मुस्कान लौटाने का काम किया।
505 लोगों की आबादी वाले इस छोटे से गांव को 2015 में नितिन ने गोद लिया। गोद लेने के बाद गांव के किसानों की माली हालत सुधारने को जैविक खेती शुरू की। पहले पहल तो कई तरह की दिक्कतें पेश आई। धीरे-धीरे चीजें खुद-ब-खुद बेहतर हो चली गई। गांव के युवा शक्ति पद महतो की मदद से छह एकड़ जमीन पर जैविक खेती शुरू हुई। लौकी, खीरा, भिंडी, बैंगन और गोविंद भोग चावल की पहली फसल ने ही यह साबित कर दिया कि अब इस गांव के किसानों के अच्छे दिन आ गए हैं।
पेशवर आयुर्वेदिक चिकित्सक नितिन ने बताया कि तमिलनाडु के मदुरै स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सेल थेरेपी से पंचगव्य में एमडी करने के उपरांत उन्होंने स्वदेशी विकास और लोगों को स्वस्थ बनाने को मानवीय उपचार के साथ ही जैविक कृषि पर जोर दिया। उनकी मानें तो पंचगव्य से सब संभव है। गौवंश के गव्यों से मानव उपचार से लेकर जमीन की उर्वरक क्षमता तक बढ़ाई जा सकती है। इसका जिक्र अथर्ववेद के आयुर्वेद में भी मिलता है।
नितिन ने बताया कि गोविंदपुर गांव के जिस जमीन पर हमने जैविक खेती की शुरुआत की, वहां की मिट्टी में फसल उगाना किसी चुनौती से कम नहीं था। ऐसे में फसल रोपाई से करीब छह माह पहले हमने वहां गौवंशों को बांधना शुरू किया। निरंतर गोमय (गोबर) के संपर्क में आने से वैज्ञानिक तरीके से जल स्तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई। खेती की पहली फसल ने ही बहुत कुछ बदल दिया।
स्थानीय किसानों का मुझ पर भरोसा बढ़ा और उनका निरंतर साथ मिलने लगा। उपजे फसल की खरीद को लोगों के फोन आए लगे। फोन करने वालों में जयपुर से लेकर दिल्ली तक के खरीदार शामिल थे। सीधे संपर्क के कारण चावल समेत अन्य सभी फसलों की अच्छी कीमत मिलती है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में गोविंद भोग चावल, हल्दी और मूंग दाल को करीब 80 हजार किलो की मांग है। जिसकी आपूर्ति को किसान दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
नितिन की मानें तो जैविक कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। यदि हम थोड़ा गंभीर बने तो खुद के साथ ही राज्य व देश की हजारों गांवों की तस्वीर बदल सकते हैं। जिसके दो लाभ होंगे, एक लोगों तक पौष्टिक व सात्विक अन्न पहुंचा स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं और दूसरा अन्नदाता को सबल बनाने को अहम योगदान दे सकते हैं।
खड़गपुर के केसीहारी में करते हैं प्रयोगात्मक अध्ययन
खड़गपुर के केसीहारी गांव में चार बीघा जमीन पर नितिन और उनके अन्य साथी प्रयोगात्मक अध्ययन कर रहे हैं। साथ ही जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ाने को विशेष रूप से जीवामृत तैयार करते हैं। इसे बनाने को गोबर, गौमूत्र, पुरानी पिपल व वट वृक्ष के पत्ते, गुड़ आदि को पानी में मिला करीब 10 से 15 दिनों तक सड़न को रखते हैं। वहीं पूरी तरह से सड़न के उपरांत इसका खेतों में छिड़काव कर फसल रोपाई शुरू करते हैं। इस बीच फसल बढ़ने के क्रम में उसमें कीड़े न लगे इसके लिए खास तौर पर तरल कीटनाशक बनाते हैं। इसके लिए नीम गोली, नीम पत्ते, तरंज, लाल मिर्च, तंबाकू धतूरा और लहसुन को जमीन के अनुपात अनुसार गौमूत्र उबालते हैं और खेत में इसका छिड़काव कर फसल की कीड़ों से रक्षा करते हैं।
ग्रामीण बच्चों की शिक्षा को खेला स्कूल
गोविंदपुर गांव के बच्चों को शिक्षित करने को नितिन ने वहां प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की है, जहां 72 बच्चे पढ़ने आते हैं। वहीं बच्चों को पढ़ाने को पांच शिक्षिक नियुक्त किए गए हैं। साथ ही विद्यालय में ही चिकित्सा समेत अन्य आवश्यक सुविधाओं की भी व्यवस्था की गई है, ताकि यहां पढ़ने आने वाले बच्चों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े।