विश्व दिव्यांग दिवसः दिव्यांगों को सम्मान से जीने का हौसला देती हैं मूक-बधिर गार्गी
मूक-बधिर गार्गी अन्य दिव्यांगजन के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। यूनियन बैंक सिलीगुड़ी में काम तो करती हैं। अन्य दिव्यांगों को भी सम्मानित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Sun, 02 Dec 2018 07:43 PM (IST)Updated: Sun, 02 Dec 2018 07:43 PM (IST)
सिलीगुड़ी [स्नेहलता शर्मा]। अगर इंसान में हिम्मत हो तो कोई भी बाधा आड़े नहीं आ सकती है। इसकी जीती-जागती मिसाल हैं मूक-बधिर गार्गी घोष। इस समय यूनियन बैंक, सिलीगुड़ी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। इनको बैंक की ओर से बेस्ट परर्फोमेंस एवार्ड-2014 भी दिया जा चुका है। ये अन्य मूक बधिरों में भी आत्मविश्वास भर रही हैं। उन्होंने अपनी भाषा में बताया कि वे किसी भी मूक बधिर को हारा हुआ नहीं देख सकती है। उनमें आत्मविश्वास भरती हैं।
उन्हें अकेले ही जिंदगी की जंग लडऩे के लिए प्रेरित करती हैं। ऐसे में कई बार वे उन्हें अकेले लेकर मूक-बधिरों के वार्षिकोत्सव में भी गई हैं, ताकि वे उनको देखकर प्रेरित हो सकें। ब्रह्मपुर, दुर्गापुर, कोलकाता के अलावा अन्य कई स्थानों पर उन्हें ले जा चुकी हंै। जरूरत पडऩे पर उनका खर्च भी उठाती हैं। हाल ही में ऑल इंडिया डीफ बैंक इम्प्लाईज एसोसिएशन की बैठक में भाग लेने अकेले ही भोपाल और चेन्नई गई थी। उनकी इशारों की भाषा को उनकी बहन मैत्री बखूबी समझ लेती है और दूसरों को भी समझा देती हैं।
उनके पिता चंदन घोष और मां राधा घोष ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि उनकी बच्ची मूक-बधिर है तो एक बार के लिए ऐसा लगा कि पैरों के नीचे से धरती खिसक गई हो, किंतु फिर हिम्मत की। उसकी पढ़ाई-लिखाई के लिए शहर में कई स्थानों पर गए, किंतु ऐसी कोई व्यवस्था नजर आई। ऐसे में उसे शिउड़ी, कोलकाता भेजना पड़ा। वहां पर कक्षा चार तक की पढ़ाई करके उसे फिर लौटना पड़ा। देशबंधु विद्यापीठ में दाखिला मिला, जहां पर सभी नॉर्मल बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। कई बार वह रो-रोकर अपनी भावनाएं व्यक्त करती थी कि स्कूल नहीं जाना चाहती हैै। क्योंकि उसके लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी, किंतु मैंने और पत्नी ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया। उसने कक्षा नौ तक की शिक्षा ग्रहण की। खेलकूद में उसकी विशेष रुचि थी। उसने देश में ही नहीं, विदेश में भी देश का नाम रोशन किया है। एशिया पेसिफिक गेम्स ऑफ द डीफ ताइवान में लॉग जंप में वर्ष 2000 में कांस्य मेडल जीता था। इसके अलावा देश में होने वाली नेशनल प्रतियोगिताओं में भी कई मेडल जीत चुकी है। अब इसे देख कतई महसूस नहीं होता है कि यह वही गार्गी है, जो कभी-कभी हारकर रोने लगती थी। अब तो वह अन्य लोगों में साहस भरती है। पति दुर्गापुर में है। एक बेटा है, जो शहर के नामी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।
उन्हें अकेले ही जिंदगी की जंग लडऩे के लिए प्रेरित करती हैं। ऐसे में कई बार वे उन्हें अकेले लेकर मूक-बधिरों के वार्षिकोत्सव में भी गई हैं, ताकि वे उनको देखकर प्रेरित हो सकें। ब्रह्मपुर, दुर्गापुर, कोलकाता के अलावा अन्य कई स्थानों पर उन्हें ले जा चुकी हंै। जरूरत पडऩे पर उनका खर्च भी उठाती हैं। हाल ही में ऑल इंडिया डीफ बैंक इम्प्लाईज एसोसिएशन की बैठक में भाग लेने अकेले ही भोपाल और चेन्नई गई थी। उनकी इशारों की भाषा को उनकी बहन मैत्री बखूबी समझ लेती है और दूसरों को भी समझा देती हैं।
उनके पिता चंदन घोष और मां राधा घोष ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि उनकी बच्ची मूक-बधिर है तो एक बार के लिए ऐसा लगा कि पैरों के नीचे से धरती खिसक गई हो, किंतु फिर हिम्मत की। उसकी पढ़ाई-लिखाई के लिए शहर में कई स्थानों पर गए, किंतु ऐसी कोई व्यवस्था नजर आई। ऐसे में उसे शिउड़ी, कोलकाता भेजना पड़ा। वहां पर कक्षा चार तक की पढ़ाई करके उसे फिर लौटना पड़ा। देशबंधु विद्यापीठ में दाखिला मिला, जहां पर सभी नॉर्मल बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। कई बार वह रो-रोकर अपनी भावनाएं व्यक्त करती थी कि स्कूल नहीं जाना चाहती हैै। क्योंकि उसके लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी, किंतु मैंने और पत्नी ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया। उसने कक्षा नौ तक की शिक्षा ग्रहण की। खेलकूद में उसकी विशेष रुचि थी। उसने देश में ही नहीं, विदेश में भी देश का नाम रोशन किया है। एशिया पेसिफिक गेम्स ऑफ द डीफ ताइवान में लॉग जंप में वर्ष 2000 में कांस्य मेडल जीता था। इसके अलावा देश में होने वाली नेशनल प्रतियोगिताओं में भी कई मेडल जीत चुकी है। अब इसे देख कतई महसूस नहीं होता है कि यह वही गार्गी है, जो कभी-कभी हारकर रोने लगती थी। अब तो वह अन्य लोगों में साहस भरती है। पति दुर्गापुर में है। एक बेटा है, जो शहर के नामी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा है।
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