फूलों की खेती ने किसानों की बढ़ाई आय, विश्वासपाड़़ा को जानने लगे फूलपाड़ा के नाम से
फूलों की खेती ने जीवन की बगिया में इतनी सुगंध बिखेरी कि पूरे गांव के लोगों ने ही इसे अपना लिया। इसका असर यह रहा कि विश्वासपाड़ा गांव को लोग फूलपाड़ा नाम से जानने लगे हैं।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Sat, 24 Nov 2018 12:24 PM (IST)Updated: Sat, 24 Nov 2018 12:24 PM (IST)
धुपगुड़ी [संवाद सूत्र]। फूलों की खेती ने इस कदर जीवन की बगिया में सुगंध बिखेरी कि एक-दो करके पूरे गांव के लोगों ने ही इसे अपना लिया। इसका असर यह रहा कि विश्वासपाड़ा गांव को लोग फूलपाड़ा नाम से जानने लगे हैं। यह गांव जलपाईगुड़ी जिले के धुपगुड़ी ब्लॉक के बारोघोडिया ग्राम पंचायत में आता है। यहां जाड़े में सिर्फ और सिर्फ फूलों की खेती की जाती है। इस मौसम में इलाका सूर्यमूखी, गेंदा, चंद्रमल्लिका, रजनीगंधी, गुलाब, पॉपी, कैलेंडुला आदि की खेती की जा रही है।
यहां के खुशी विश्वास, बुद्धि विश्वास, गणेश विश्वास, मिठुन विश्वास, सुरेन विश्वास आदि अपनी पूरी जमीन में फूलों की खेती करते हैं। कभी शीत के मौसम में आलू की खेती यहां के लोगों के लिए रोजगार का एकमात्र साधन हुआ करती थी। ज्यादा लाभ नहीं मिलने से किसान गाजर व अन्य अनाज के साथ फूलों की खेती करने लगे। बारिश के मौसम में धान, पाट की खेती की जाती है।
फूल की खेती करने में किसानों को एक रुकावट आती है। यहां फूल का कोई बाजार नहीं होने से फसल के बाद भी बेचने में असुविधा होती है। मजबूरन भूटान के सीमांत बाजार में जाकर बिक्री करनी पड़ती है। इसके अलावा सिलीगुड़ी, इस्लामपुर व मेखलीगंज से भी थोक व्यवसायी यहां खरीदने आते हैं।
किसान सुरेन विश्वास ने कहा कि आलू की कीमत निश्चित नहीं होती। आलू की खेती करने से किसानों को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा था। इसलिए किसान शीत के मौसम में फूल की खेती पर जोर देते हैं। इससे कुछ महीनों तक घर का खर्चा निकल जाता है। अगर यहां फूल का बाजार होता तो किसानों को ज्यादा लाभ मिलता।
यहां के खुशी विश्वास, बुद्धि विश्वास, गणेश विश्वास, मिठुन विश्वास, सुरेन विश्वास आदि अपनी पूरी जमीन में फूलों की खेती करते हैं। कभी शीत के मौसम में आलू की खेती यहां के लोगों के लिए रोजगार का एकमात्र साधन हुआ करती थी। ज्यादा लाभ नहीं मिलने से किसान गाजर व अन्य अनाज के साथ फूलों की खेती करने लगे। बारिश के मौसम में धान, पाट की खेती की जाती है।
फूल की खेती करने में किसानों को एक रुकावट आती है। यहां फूल का कोई बाजार नहीं होने से फसल के बाद भी बेचने में असुविधा होती है। मजबूरन भूटान के सीमांत बाजार में जाकर बिक्री करनी पड़ती है। इसके अलावा सिलीगुड़ी, इस्लामपुर व मेखलीगंज से भी थोक व्यवसायी यहां खरीदने आते हैं।
किसान सुरेन विश्वास ने कहा कि आलू की कीमत निश्चित नहीं होती। आलू की खेती करने से किसानों को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा था। इसलिए किसान शीत के मौसम में फूल की खेती पर जोर देते हैं। इससे कुछ महीनों तक घर का खर्चा निकल जाता है। अगर यहां फूल का बाजार होता तो किसानों को ज्यादा लाभ मिलता।
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