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अनुच्छेद 370 पर जगी उम्मीद: जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद फिर गोरखालैंड के लिए उठी मांग

पहाड़ के दलों ने पश्चिम बंगाल से अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की बिमल गुरुंग बोले पहाड़ क्षेत्र के स्थाई राजनीतिक समाधान के अपने चुनावी वादे निभाए भाजपा ।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 01:06 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 01:06 PM (IST)
अनुच्छेद 370 पर जगी उम्मीद: जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद फिर गोरखालैंड के लिए उठी मांग
अनुच्छेद 370 पर जगी उम्मीद: जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद फिर गोरखालैंड के लिए उठी मांग

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और राज्य को दो भागों में बांटने के केंद्र के फैसले ने उत्तर बंगाल में पहाड़ की प्रमुख पार्टियों में फिर आशा की किरण जगा दिया है जो वर्षो से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग करते आ रहे हैं। यहां के प्रमुख पर्वतीय दलों ने दार्जिलिंग को लेकर विधानसभा के साथ अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने जाने की मांग की है। दार्जिलिंग से भाजपा के सांसद राजू बिष्ट ने भी कहा है कि हमें उम्मीद है कि हमारी पार्टी पहाड़ के लोगों के स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा 2024 तक जरूर पूरा करेगी। हालांकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि पश्चिम बंगाल को बांटने वाले किसी भी कदम का वह विरोध करेगी।

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वहीं, भाजपा का समर्थन करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के प्रमुख बिमल गुरुंग ने एक बयान जारी कर कहा कि भाजपा को पहाड़ क्षेत्र के लोगों के स्थाई राजनीतिक समाधान के अपने चुनावी वादे को पूरा करना चाहिए। अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर पहाड़ के नेता कई दशकों से आंदोलन कर रहे हैं और क्षेत्र में हिंसक प्रदर्शन भी हो चुके हैं।

जीजेएम के महासचिव रोशन गिरि ने पार्टी प्रमुख बिमल गुरुंग के हवाले से कहा कि हमलोग कई सालों से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग कर रहे हैं। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसके स्थाई राजनीतिक समाधान का वादा किया था। उन्होंने कहा, हमारा मानना है कि इस क्षेत्र को विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश बनाने का यह उपयुक्त समय है। हमलोग जल्द ही इस पर आंदोलन भी शुरू करेंगे।

वहीं, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के नेता एनवी छेत्री ने कहा, अलग राज्य की मांग में लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन हमारा मानना है कि विधानसभा के साथ केंद्र शासित क्षेत्र सभी पक्षकारों को स्वीकार्य होगा।

पहाड़ के दलों के नेताओं के इस बयान पर स्थानीय भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि वह उनके विचारों का सम्मान करते हैं। इस संबंध में किसी समाधान पर पहुंचने से पहले सभी विकल्पों पर विचार किया जाएगा। साथ ही सभी पार्टियों के साथ चर्चा की जाएगी। बिष्ट ने आगे कहा, मैं उन्हें आश्वस्त कर सकता हूं कि भाजपा स्थाई राजनीतिक समाधान के अपने वादे को जरूर पूरा करेगी। दरअसल, बिमल गुरुंग सहित पहाड़ की कई अन्य पार्टियों क समर्थन से ही बिष्ट ने 2019 लोकसभा चुनाव में में दार्जिलिंग सीट से भारी मतों से जीत हासिल की है। हालांकि, प्रदेश भाजपा के कई नेताओं ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने विश्‍वास जताया कि केंद्र सरकार दशकों पुरानी इस समस्या का समाधान करेगी।

दूसरी ओर, तृणमूल का समर्थन करने वाले जीजेएम के धड़े ने विधानसभा के साथ केंद्र शासित क्षेत्र बनाने की मांग को खारिज करते हुए कहा कि भाजपा ने पिछले 10 साल से पहाड़ क्षेत्र के लोगों को अलग राज्य का लॉलीपॉप दिखाकर मूर्ख बनाया है।

तृणमूल का समर्थन करने वाले जीजेएम के धड़े के नेता बिनय तमांग ने कहा, न तो भाजपा और न ही बिमल गुरुंग यहां की जनता की समस्या को लेकर गंभीर हैं। वे सिर्फ अपने राजनीतिक मकसद के लिए उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं। वहीं, पहाड़ क्षेत्र से आने वाले तृणमूल के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री गौतम देब ने कहा कि वह राज्य के बंटवारे का कभी समर्थन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, भाजपा की नीति बांटो, तोड़ो और राज करो की रही है। लेकिन बंगाल में हम इसे कभी नहीं होने देंगे।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित करने का प्रस्ताव सोमवार को राज्यसभा में पेश किया और यह पास भी हो गया। मंगलवार को लोकसभा में इसे पेश किया गया।

1980 से ही की जा रही है गोरखालैंड की मांग

बता दें कि उत्तर बंगाल में स्थित दार्जिलिंग एक खूबसूरत पहाड़ी शहर है। विश्‍व प्रसिद्ध चाय के लिए दार्जिलिंग पूरी दुनिया में मशहूर है। इस क्षेत्र में गोरखाओं का वर्चस्व है। गोरखालैंड को अलग राज्य बनाने की मांग सबसे पहले 1980 के दशक में की गई थी। इसे लेकर सर्वप्रथम सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले जीएनएलएफ ने 1986 में हिंसक आंदोलन शुरू किया था जो 43 दिनों तक चला था। इस आंदोलन में 1200 लोगों की जानें गई थी। फिर जीजेएम के गठन के बाद बिमल गुरुंग के नेतृत्व में 2007 से गोरखालैंड को लेकर आंदोलन शुरू हुआ। 

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