छठी अनुसूची पहाड़ पर नहीं होगी प्रभावी : दावा पाख्रिन
-जीटीए समाप्त करने संबंधी बयान को बताया निराधार - सरकार पर लगाया गोरखालैंड समर्थकों की
-जीटीए समाप्त करने संबंधी बयान को बताया निराधार
- सरकार पर लगाया गोरखालैंड समर्थकों की अनदेखी का आरोप
संवादसूत्र, कालिम्पोंग : गोरखा राज्य निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष दावा पाख्रिन ने मंगलवार को गोरामुमो द्वारा की जा रही छठी अनुसूची का विरोध करे हुए कहा कि छठी अनुसूची को आंतरिक व्यवस्था बताते हुए इससे गोरखा जाति की आकांक्षा कभी पूरी नहीं हो सकती है। पाख्रिन ने कहा कि भले ही भारत सरकार ने छठी अनुसूची को मान्यता दे रखी हो किंतु राज्य पहाड़ पर उक्त व्यवस्था बंगाल राज्य सरकार के अधीन ही कार्य करेगी। पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि इससे पूर्व त्रिपुरा में अनुसूची को लागू किया गया था जहां जनजातियों की संख्या घटकर 30 प्रतिशत रह गई है। वहंी बोडोलैंड क्षेत्रीय प्रशासन होने के 15 वर्ष बीत जाने के बाद भी जनजाति समुदाय की संख्या 46 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत हो गई है। पाख्रिन ने कहा कि अनुसूची को लागू करने पर सभी कार्य के लिए राज्य सरकार ही सर्वेसर्वा हो जाएगी। पाख्रिन ने तंज कसते हुए कहा कि गोरामुमो को जल्द सदबुद्धि आए और वो भी अलग राज्य के लिए आगे आए। उन्होने मन घीसिंग द्वारा जीटीए को खारिज करने वाले बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हिल एरिया डेवेलपमेंट समिति की कमान संभालने वाले नेता को ऐसी बातें शोभा नहीं देती है।
उन्होने यह भी कहा कि जीटीए को पूर्ण रूप से खारिज करते हुए कहा कि जीटीए को पूरी तरह खारिज कर गोरखालैंड राज्य के लिए वार्ता आरंभ करने की बात कही। पाख्रिन ने विनय तामांग पर निशाना साधते हुए कहा कि जीटीए के गठन से पूर्व कहा गया था कि गोरखा जाति की पहचान को बचाए रखने के लिए ही जीटीए के गठन की बात हुई थी किंतु वैसा हो नहीं पाया। ऐसे में तामांग ने सुकना में एक बार फिर जाति की पहचान बनने वाली व्यवस्था लाने की बात कही है जो निराधार ही है।
पाख्रिन ने तामांग पर हमला यहीं नहीं रोका और कहा कि सिक्किम राज्य के प्रति तामांग द्वारा टिप्पणी किए जाने पर करारा पलटवार करते हुए कहा कि पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग को गोरखा जाति के लिए पूज्यनीय व्यक्ति बताया।
वहीं पाख्रिन ने आगामी 11 फरवरी को दिल्ली में फेडरेशन आफ न्यू स्टेट की बैठक में गोरानिमो द्वारा शामिल होने की ीाी जानकारी दी। पाख्रिन ने कहा कि बंगाल सरकार के सामने पहाड़ के सियासी दलों के दो रूप थे जिनमें एक थे गोरखालैंड की मांग करने वाले तथा दूसरी ओर थे राज्य सरकार के साथ कार्य करने वाले जिनमें से राज्य ने दूसरे गुट को चुना और अलग राज्य मांगने वाले दलों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए उन्हें सभा तक की अनुमति नहीं प्रदान की। पाख्रिन ने राज्य सरकार की इन नीतियों की आलोचना की है।