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बेटा कुल दीपक, तो बेटियां घर की जन्नत होती है..

-राष्ट्रीय बालिका दिवस पर दैनिक जागरण की लक्ष्य सशक्त बेटियों से सशक्त महिला तक की मुहिम को

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 08:31 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 06:20 AM (IST)
बेटा कुल दीपक, तो बेटियां घर की जन्नत होती है..
बेटा कुल दीपक, तो बेटियां घर की जन्नत होती है..

-राष्ट्रीय बालिका दिवस पर दैनिक जागरण की 'लक्ष्य' सशक्त बेटियों से सशक्त महिला तक की मुहिम को कवयित्रियों ने सराहा

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-इंटर स्कूल कविता प्रतियोगिता के जरिए छात्रों को दिया जाएगा प्लेटफार्म : बबिता अग्रवाल

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : आज की सशक्त बालिका ही कल की सशक्त महिला होगी। इस भावना को केंद्र में रखकर शुक्रवार को राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर एसपी मुखर्जी रोड स्थित एचबी विद्यापीठ में दैनिक जागरण की ओर से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। दैनिक जागरण की मुहिम 'लक्ष्य', 'सशक्त बेटियों से सशक्त महिला तक' को विषय बनाकर महिला काव्य मंच(मकाम), सिलीगुड़ी शाखा की कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक सुंदर कविता, गीत, गजल आदि प्रस्तुत किया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ग‌र्ल्स हाईस्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका व मकाम की अध्यक्षा डॉ. वंदना गुप्ता ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्वरचित सरस्वती वंदना से हुई, जिसकी प्रस्तुति मकाम की महासचिव बबिता अग्रवाल कंवल ने की। इस अवसर पर एचबी विद्यापीठ, प्रबंधन कमेटी के सचिव संजय टिबड़ेवाल, प्राचार्या व मकाम की संरक्षक अर्चना शर्मा, नीतू दीक्षित, शबनम खान, ब्यूटी सहगल, दैनिक जागरण ब्रांड विभाग के अवधेश दीक्षित, दैनिक जागरण की उप संपादक रीता दास, देश बंधु हिंदी हाईस्कूल की शिक्षिका बबिता झा सहित मकाम की सदस्या उपस्थित थीं।

बालिका दिवस को केंद्र में रखकर बालिका को अपने आंखों में अंगार का श्रृंगार करने का आह्वान करते हुए कवयित्री बबिता अग्रवाल कंवल ने बालिकाओं में जोश भरते हुए शेर के माध्यम से कहा -'आंख में अंगार का श्रृंगार होना चाहिए, वहशी दरिंदो के लिए खूंखार होना चाहिए।' सरकार भले ही बेटियों को पढ़ाने और बढ़ाने की बात करे। लेकिन सच्चाई है कि आज के दौर में बेटिया सुरक्षित नहीं है। इसलिए वह धरती पर आने से डरती है। इस दर्द को कवयित्री बबिता झा ने अपनी कविता में अभिव्यक्त करते हुए फरमाया-'हां, वह ध्वनि थी, वो पूछ रही थी कि क्या मैं आऊ?' वहीं दूसरी ओर लड़की को कपड़े से आंकने वाले बीमार मानसिकता वाले समाज पर तमाचा जड़ते हुए कवयित्री रूबी प्रसाद ने कहा-'छोटे कपड़े टाइट जिंस, जाने क्या-क्या निकाला इसका मिसं।'

हमारा समाज अभी भी बेटे-बेटियों में फर्क करता है। बेटियों को अभी भी बोझ समझते है। लेकिन बेटियां क्या होती है, इसे कवयित्री डॉ. वंदना गुप्ता बताती हुई कहती है-'बेटे घर के कुल दीपक होते हैं/हमें ये नाज है कि बेटी घर की जन्नत होती है।' तो अमरावती गुप्ता ने बेटी को सृजनकारी बताया। कवयित्री किरण अग्रवाल ने बालिका दिवस पर कहा कि आज का युग बेटियों का है। अब बेटियों की बारी है। नारी कमजोर नहीं है। इस बात को प्राचार्य अर्चना शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त किया। वें कहती है- 'हमें कमजोर न समझो, हम तो सब पे है भारी।' तो दूसरी ओर प्रियंका जायसवाल ने एसिड अटैक के दर्द को अपनी कविता 'तेजाब' के माध्यम से व्यक्त किया। कवयित्री कमला पांडेय ने बेटियों को पूरे घर की शान बताया। शर्म, लाज के नाम पर महिलाओं को घर की चाहरदिवारी में बंद करने वाले के खिलाफ कवयित्री रीता दास ने कहा-'कब तक बाधोंगे चौखट से /कब तक बेड़ी पहनाओगे/ अब न में शरमाऊंगी।' वहीं स्नेहा कुमारी की कविता-'पास होकर भी अपने, अपनो से दूर है।' को काफी पसंद किया गया। कवयित्री निशा गुप्ता, आशा बंसल के अलावा एच बी विद्यापीठ की छात्रा दिशु उपाध्याय, मधुश्री, प्रिया झा, महक सिंह, ममता साह, सोनम महराज आदि ने भी तत्क्षण कविता लिखकर मंच पर प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन मकाम की सचिव रीता दास ने किया।

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