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सत्ता में वापसी ज्योतिबसु की सच्ची श्रद्घांजलि : अशोक भट्टाचार्य

-वार्ड सात व 18 में किया जनसंपर्क अभियान -कहा सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए जरुर

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Jan 2021 01:21 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 01:21 PM (IST)
सत्ता में वापसी ज्योतिबसु की सच्ची श्रद्घांजलि : अशोक भट्टाचार्य
सत्ता में वापसी ज्योतिबसु की सच्ची श्रद्घांजलि : अशोक भट्टाचार्य

-वार्ड सात व 18 में किया जनसंपर्क अभियान

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-कहा, सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए जरुरी है वामो कांग्रेस गठबंधन की जीत

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : माकपा नेता व बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की रविवार को पुण्यतिथि मनायी गयी। उन्होंने आज ही की तिथि में 2010 को कोलकाता में अंतिम सास ली थी। इस मौके पर माकपा के वरिष्ठ नेता व स्थानीय विधायक अशोक नारायण भट्टाचार्य ने कहा कि सत्ता में माकपा को पुन: स्थापित करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि भारत की राजनीति में उनका कद काफी ऊंचा रहा है। पश्चिम बंगाल तक सिमटे रहने के बावजूद उनकी आवाज राष्ट्रीय राजनीति में भी एक अहम मुकाम रखती थी। ज्योति बसु देश के किसी राज्य में सबसे लंबे समय तक रहने वाले दूसरे मुख्यमंत्री थे। वे लगातार 23 साल 137 दिनों तक पश्चिम बंगाल के सीएम रहे थे। वो आजीवन सीपीआई-एम की पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रहे।

उनका जन्म 8 जुलाई 1914 को कोलकाता में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे। बसु की परवरिश बड़ी ज्वाइंट फैमिली में हुई थी।

1925 में कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर स्कूल में एडमिशन कराने के लिए बसु के पिता ने उनका नाम ज्योतिंद्र बसु से ज्योति बसु किया था। इसके बाद वह इसी नाम से पहचाने गए। ज्योति बसु ने 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ली थी। जल्द ही वे पार्टी में अहम पदों पर पहुंचे और फिर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। ज्योति बसु हमेशा देश का नेतृत्व करना चाहते थे। हालाकि बसु ने खुद दो बार ये ऑफर ठुकराया था। 1996 में तीसरी बार उन्हें प्रधानमंत्री बनने का ऑफर मिला था। इस बार वो प्रधानमंत्री बनने को तैयार थे। उन्होंने कहा था कि अगर पार्टी अनुमति देगी तो वे पीएम बनेंगे। ज्योति बसु को धक्का तब लगा जब पार्टी ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। दरअसल केंद्र में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और मिली-जुली सरकार बननी थी। पर बसु की पार्टी में इसके लिए एकमत नहीं बन सका।

ज्योति बसु की प्रशासनिक क्षमता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1984 में इंदिरा गाधी की हत्या के बाद जब देश के कई हिस्सों में दंगे भड़के हुए थे तो पश्चिम बंगाल शात था। वहीं 1992 में भी बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों में भी उनका राज्य काफी हद तक शात था। आज स्थिति बिल्कुल बदली हुई है। आज सांप्रदायिक शक्तियां बंगाल में हावी है। इससे मुकाबला करने के लिए जरुरी है कि वाममोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन सत्ता में आए। अशोक नारायण भट्टाचार्य इसके साथ ही रविवार को वार्ड सात व 18 में घर-घर जाकर जनसंपर्क अभियान चलाकर लोगों से पार्टी का साथ देने का आह्वान कर रहे है।


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