बगैर दान भला कैसे चले गौशाला,दानदाताओं ने काटी कन्नी
- कोरोना काल में आमदनी चौवन्नी और खर्चा रुपैया -13 सौ से अधिक गोवंशों का अस्तित्व संकट
- कोरोना काल में आमदनी चौवन्नी और खर्चा रुपैया
-13 सौ से अधिक गोवंशों का अस्तित्व संकट में
-कर्मचारियों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट हिसाब-किताब
-गायों की देखभाल में प्रति महीना आठ लाख होता है खर्च
-अभी प्रति महीना तीन रुपये की राशि आ पाती है दान में
-पुआल की बढ़ती कीमतों ने और बढ़ाई परेशानी -------
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रुपये प्रति किलो पुआल की कीमत पहले
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रुपये प्रति किलो पुआल की कीमत अभी
स्नेहलता शर्मा, सिलीगुड़ी : गौमाता की पूजा हर हिंदू के घर में की जाती है। लेकिन आज के दिन गौपालन खेत खलिहान और गाव तक ही सिमट कर रह गया है। इसलिए गांव के लोग तो गाय की पूजा कर लेते हैं,लेकिन शहर के लोगों को गाय की पूजा करने में परेशानी होती है। शहरों में घरों में उतनी जगह नहीं होती की लोग गाय पाल सकें। ऐसे में शहरों में अगर गायों की पूजा करनी हो तो गौशाला ही एकमात्र सहारा है। लेकिन कोरोना महामारी ने सब कुछ बदल दिया है। देश-दुनियां बदल गई है। जीने का तरीका बदल गया है। कोरोना महामारी का मानव जीवन पर काफी असर पड़ा है। शहरों में गौ पूजन और गौशाला की भी कमोवेश यही स्थिति है। कोरोना महामारी के समय धीरे-धीरे लोगों का गौशाला आना-जाना घट रहा है। पूजा पाठ तो कम हो ही रहा है,दानपुण्य भी घटता जा रहा है। आनेवाले समय मे अगर दानदाता आगे नहीं आए तो स्थिति बिगड़ सकती है। दाíजलिंग-सिलीगुड़ी गौशाला भी इन दिनों आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है। लोग दान नहीं दे रहे हैं। जिसकी वजह से इस गौशाला के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है। मिली जानकारी के अनुसार इस समय गौशाला में 1325 गाय, साड और बछड़े हैं। गौशाला के पदाधिकारियों के अनुसार आज कोरोना महामारी के समय दानदाताओं को आगे आकर बढ़-चढ़कर दान की जरूरत है। तभी गौ माता का अस्तित्व बच पाएगा और गौशाला परिसर में उनकी देखभाल सही तरीके से हो पाएगी । गौशाला में प्रति महीना गायों की देखभाल में 8 लाख रुपये का खर्च होता है। इसके अलावा कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य खर्च भी है। कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिलने पर उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। कोरोना से पहले दानदाता नियमित रूप से दान करते थे। उनके दान से दान से ही यह खर्च सही तरीक़े से चलता था। किंतु अब प्रति महीना लगभग तीन लाख ही दान की राशि आ पाती है। फिलहाल तो स्थिति ठीक है,लेकिन कितने दिनों तक ठीक रहेगी कह पाना मुश्किल है। आने वाले दिनों में भी दान में कमी जारी रही तो बहुत ही भयावह स्थिति हो जाएगी । अभी फंड में कुछ जमा दान ओर आने वाली दान राशि से ही खर्चा चल रहा है। किंतु अब दानदाताओं को आगे आकर गौशाला के अस्तित्व को बचाना होगा। इस समय तो पुआल भी महंगा हो गया है। पहले जहां तीन रुपए प्रति किलो के हिसाब से पुआल मिलता था अब उसकी कीमत बढ़ कर 8रुपए प्रति किलो हो गई है। यानि करीब ढ़ाई गुना से अधिक बढ़ोत्तरी। पुआल का प्रबंध करना भी एक कठिन कार्य है। वहीं बरसात की वजह से हरी घास भी नहीं मिल पा रही है। पानी की वजह से घास बर्बाद हो गया है। गाय को क्या चारा दें समझ में नहीं आ रहा है। कुछ खास बातें
1.हरी घास ना होने की वजह से गाय की दूध देने की क्षमता भी कम हो गई है। पहले 1000 लीटर दूध इन गायों से निकाल लेते थे। अब वह घटकर 750 लीटर रह गया है।
2.दूध देने वाली गाय 200 से भी कम है। इन दिनों दूध से आने वाली आय भी कम हो गई है।
3.पहले प्रतिदिन दानदाताओं के द्वारा 10 सवामणी गायों के लिए प्राय: प्रतिदिन आती थी। अब वह भी घटकर दो-तीन पर पहुंच गई हैं। एक सवामणी का मूल्य 11 सौ रुपए हैं।
4.दान नहीं मिलने से सिर्फ गायों को ही परेशानी नहीं होगी,कर्मचारियों के रोजी रोटी का संकट भी पैदा हो जाएगा। उनकी तनख्वाह भला कैसे निकलेगी।
5.बिजली बिल भर पाना मुश्किल हो जाएगा। गौशाला परिसर में पानी की 6 बोरिंग लगाई गई है। अगर गाय पानी पीना चाहे तो ऑटोमेटिक रूप से पीने का पानी उपलब्ध हो जाता जाता है। जितना पानी पीना चाहिए वह पी सकती है। इससे पानी की बर्बादी नही होती है।
6.वही पुआल काटने की तीन और दाना पीसने की दो मशीनें भी लगाई गई है। इनकी सेवा के लिए लगभग 80 स्टाफ कार्य करते हैं जिनकी तनख्वाह 9 से 15 हजार तक प्रति महीने है। इसके अलावा गौशाला परिसर में लगभग 300 पंखे हैं, जो गायों के लिए रात दिन चलते रहते हैं । जाहिर है बिजली बिल भी काफी भरना पड़ रहा है। कोरोना काल में दान मिलना बंद हो गया है। अगर लोग दान कर भी रहे हैं तो काफी कम। कम संख्या में दानदाता सामने आ रहे हैं। पहले से जमा फंड से गौशाला का संचालन हो रहा है। लेकिन जमा राशि से भला कब तक काम चलाया जा सकता है। लोगों को दान के लिए आगे आना चाहिए।
- सावरमल आलमपुरिया,अध्यक्ष ------ कोरोना महामारी के समय गौशाला का संचालन काफी मुश्किल हो रहा है। धन की काफी कमी हो रही है। गौमाता को बचाए रखने के लिए गौशाला का संचालन जरूरी है। महामारी अभी खत्म होते भी नहीं दिख रही। इसी में सबको चलना है। दानदाताओं को आगे आकर दान करना चाहिए।
- बनवारीलाल करनानी,सचिव