भाजपा के लिए चुनौती है तीन चरणों का चुनाव
जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी बंगाल के बाकी तीन चरणों के चुनाव में भाजपा की दिक्कतें बढ़ सकती
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : बंगाल के बाकी तीन चरणों के चुनाव में भाजपा की दिक्कतें बढ़ सकती हैं, क्योंकि इन चरणों के चुनाव में उत्तर बंगाल के तीन जिलों मालदा, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर के ममता बनर्जी के गढ़ माने जाने वाले कोलकाता और उसके आसपास होना है। साथ ही कई सीटें ऐसी हैं जिन पर अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। रविवार को सुवेंदु अधिकारी ने मालदा के विधानसभाओं में रोड शो और जनसभा को संबोधित किया है। वहीं कलियागंज में गृहमंत्री अमित शाह सोमवार दोपहर रोड शो करने वाले है। आठ चरण के चुनाव में पाच चरणों का चुनाव हो चुका है और भाजपा के बड़े नेताओं के दावे को मानें तो वह बढ़त पर है। यही दावे तृणमूल काग्रेस के भी हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबला कड़ा है।
छठें चरणों के चुनाव पर कोरोना का असर ज्यादा दिखने लगा है क्योंकि अब मामले तेजी से बढ़े हैं और चुनाव आयोग ने भी सख्ती दिखाई है। आयोग ने भी रैलियों, सभाओं और रोड शो में कोरोना प्रोटोकाल के सख्ती से अमल के निर्देश दिए हैं, हालाकि उसने चुनाव प्रचार पर रोक नहीं लगाई है और न ही मतदान की तिथिया बदली है। ऐसे में आखिरी चरण तक चुनावी घमासान जारी रहेगा।
सूबे की बंगाल की चुनावी तस्वीर में यह तीन चरण सबसे ज्यादा कठिन माने जा रहे हैं। पाचवें और छठवें चरण में वहा पर ध्रुवीकरण की स्थिति में भाजपा को नुकसान हो सकता है। हालाकि भाजपा के नेता इससे इनकार कर रहे हैं। सातवें व आठवें चरण की अधिकाश सीटें भारत बांग्लादेश सीमांत क्षेत्रों के हैं। बीते दो विधानसभा चुनाव से यह कांग्रेस और ममता का गढ़ माना जाता है। ममता बनर्जी का निजी प्रभाव भी क्षेत्र में काफी रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें होंगी। हालाकि भाजपा नेताओं कहना है कि पहले चरण से ही बदलाव का माहौल बन चुका है और वह आखिरी चुनाव तक जारी रहेगा। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए हाल में चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में तृणमूल काग्रेस ने बाकी चरणों के चुनाव एक साथ कराने की माग की थी, जबकि भाजपा पहले की तरह ही मतदान चाहती थी। आयोग ने चुनाव प्रक्रिया और मतदान में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे भाजपा राहत महसूस कर रही है, क्योंकि एक साथ चुनाव होने पर उसे गड़बड़ी का डर था। देखना है कि इस चुनावी चुनौती से भाजपा कैसे निपट पाती है।