महाभारत काल से चली आ रही है छठ पूजा की पंरपरा
त्योहारों का देश कहे जाने वाले भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जो काठी कठिन और पौराणिक है। इसमें से एक है चैती छठ।
सिलीगुड़ी, जेएनएन। त्योहारों का देश कहे जाने वाले भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जो काठी कठिन और पौराणिक है। इसमें से एक है चैती छठ।
कहते हैं कि रामायण और महाभारत काल से छठ मनाने की परंपरा चली आ रही है। महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने इस व्रत को किया था।
उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और उनका खोया राजपाट प्राप्त हुआ। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे।
मान्यताओं के अनुसार राम वनवास के दौरान मां सीता ने भी छठ की पूजा की थी। माता सीता जब लंका से लौटीं तो ऋषि मुग्दल के निर्देश पर उन्होंने छठ का व्रत किया।
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर चैती छठ व्रत का होगा समापन
चैती छठ शुक्रवार को व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। इनके साथ परिजन ने भी अर्घ्य दिए। शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस व्रत का पारण होगा। अर्घ्य को लेकर शुक्रवार की शाम नदी घाटों की छटा अलौकिक थी। विद्युत झालरों से बनाए गए तोरणद्वार लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रहे थे। घाटों पर ही नहीं, इनकी ओर जाने वाले मार्गो पर भी आस्था हिलोरें मार रही थी। कहीं-कहीं व्रतियों के गुजरने के ठीक पहले मार्गो की धुलाई भी कर दी गई थी। आगे-आगे दउरा लिए पुरुष, पीछे-पीछे छठ मइया के गीत गातीं व्रती और अन्य महिलाएं तथा बच्चे चल रहे थे।
अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने मेंची, चेंगा, बालासन और तीस्ता नदियों के किनारे छठ मइया की पूजा-अर्चना की। पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी महकमा में खोरीबाड़ी, नक्सलबाड़ी, बागडोगरा, माटीगाड़ा, सालुगाड़ा और फांसीदेवा समेत अन्य स्थानों पर छठ व्रतियों के हुजूम के कारण मिनी इंडिया की झलक दिख रही थी। महानंदा नदी के मां संतोषी घाट और लाल मोहन निरंजन घाट, सालुगाड़ा स्थित महानंदा नदी के किनारे दोपहर के बाद से ही छठ मइया के गीत सुनाई पड़ने लगे। व्रती महिलाएं अपने परिजन के साथ घाटों के लिए रवाना होने लगीं। कुछ तो मनौती के कारण दंडवत करते घाट पहुंचीं।
बड़ी संख्या में घाटों पर सभी समुदाय के लोगों की भीड़ लगी रही। शाम 4.20 मिनट पर घाट दीपों से रौशन हो गया था। शाम होते ही घाट के किनारे जगमग करती दीप श्रृंखला आकाशगंगा की तरह दिख रही थी। घाट पर पहुंच छठव्रती भगवान भाष्कर की पूजा-अर्चना करते हुए सूर्य के डूबने का इंतजार करने लगे। शाम पांच बजे नदी में डुबकी लगाई और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। दोनों घाटों पर मेला सा लगा हुआ था। सभी घाटों पर व्रतियों के आने-जाने में कोई व्यवधान न पहुंचे, इसके लिए सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे। स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा दूध, प्रसाद, पेयजल, चिकित्सालय, खोया-पाया आदि मदद शिविर के माध्यम से की गई। पूरे महानंदा छठ घाट परिसर में शुद्धता बनाए रखने के लिए सफाई के साथ ही विद्युत साज-सज्जा की गई थी।