CAA and NRC: भाजपा नेता राजू बिष्ट नेे कहा- नागरिकता कानून का विरोध औचित्यहीन
नागरिकता कानून का विरोध विरोधियों द्वारा सड़क पर इस पाखण्ड की नौटंकी के द्वारा विरोध औचित्यहीन है। यह कहना है भाजपा नेता सह दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट का।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। नागरिकता कानून का विरोध विरोधियों द्वारा सड़क पर इस पाखण्ड की नौटंकी के द्वारा विरोध औचित्यहीन है। यह कहना है भाजपा नेता सह दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट का। उन्होंने अपने संसदीय दौरा ओर नागरिकता कानून के समर्थन में घर घर प्रचार के दौरान कहा कि विपक्ष को भीड़ को धर्म के नाम पर फैलाए जा रहे भ्रम के बहकावे में न आकर इस संशोधित नागरिकता कानून का स्वयं अवलोकन करना चाहिए। उन्होंने गंडगोलजोत, अपर बागडोगरा में लोगों को समझाते हुए कहा की यह कानून नागरिकता लेने वाला नही बल्कि देने वाला है। हिल्स हो समतल इसका जितना गलत ममता बनर्जी द्वारा प्रचार करेंगी उतना भाजपा का वोट बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान एक गतिशील संविधान है, जो देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढालता व बदलता रहता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की पूरी प्रक्रिया है। वर्ष 2016 में मोदी जी के शासन ने इन संशोधन पर गहनता और गंभीरता से विचार करने हेतु एक संयुक्त पार्लियामेंट्री कमेटी का गठन मुम्बई के पुलिस कमिश्नर व बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह की अध्यक्षता में किया गया।
कुछ महीनों में ही भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्री बनने के कारण दिनांक 25/12/2017 में इस कमेटी की अध्यक्षता मेरठ से वरिष्ठ सांसद राजेन्द्र अग्रवाल जी को सौंपी गई। इस कमेटी में कांग्रेस के वर्तमान लोकसभा में नेता अधीर रंजन चैधरी, महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षता व आसाम से सांसद सुश्मिता देव, कम्युनिस्ट पार्टी के तेज तर्रार नेता मो सलीम, बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्रा, सपा नेता जावेद अली खां व तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ-ब्रेन इस कमेटी के प्रमुख चेहरे थे।
कुल मिलाकर संयुक्त संसदीय समिति में 30 सांसदों के अतिरिक्त भारत सरकार के गृह, न्याय और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों के अलावा भारत की आंतरिक सुरक्शा से जुडे खुफिया तंत्र अनुसंधान और विश्लेषण विंग (रॉ), इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) सहित सभी प्रमुख एजेंसियों की उपस्थिति प्रमुखता से दर्ज की गई। इस कमेटी के पास 9267 व्यक्तियों के ज्ञापन, 56 गैर सरकारी संगठनों की सूची उपलब्ध है, जिन्होने समिति के समक्ष मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किए।
जेपीसी का दस्तावेज 438 पृष्ठों का तैयार हुआ। मजे की बात यह है कि जब जेपीसी में आपकी पार्टी की सशक्त उपस्थिति रही। तब क्या आपके सांसद बैठक में अनुपस्थित थे? या संसद में जागृत अवस्था में नहीं थे अथवा आंखो से इशारे कर समय नष्ट कर रहे थे। बिल के दस्तावेज बनाने वाले आप कैसे अनुच्छेद 14 एवं 19 को नहीं देख पाए।
यह तर्क भारत की सबसे बड़ी पंचायत के सदस्यों की गरिमा को धूमिल करने वाला लगता है। सत्य तो यह है कि सड़क पर विरोध और विद्रोह करने वाले नेता राफेल की जेपीसी जांच कराने की वकालत करते हुए इसे सर्वश्रेष्ठ पड़ताल कमेटी घोषित करने में थकते नहीं थे।
अब वही नेता जेपीसी को धता बताकर धर्म के आधार पर भ्रम फैलाने में लगे हैं। संसद के दोनो सदनों ने सर्वदलीय समझदारी और संसदीय साझेदारी से बने इस बिल को साझा जिम्मेदारी के साथ पास करके राष्ट्रपति महोदय द्वारा इस पर अनुमति मुहर लगा दी गई। अब यह देश का कानून बन गया। इसके पश्चात् कानून का कोई भी विरोध भारत की संसद की अवमानना नहीं तो क्या कहा जाएगा ?