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बांग्ला भाषा आंदोलन के शहीदों की याद में मनाया जाता है यह दिन

21 फरवरी को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाती है। मगर, क्यों। इसकी पृष्ठभूमि में वर्ष 1952 का बांग्ला भाषा आंदोलन है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 22 Feb 2018 04:05 PM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2018 04:05 PM (IST)
बांग्ला भाषा आंदोलन के शहीदों की याद में मनाया जाता है यह दिन
बांग्ला भाषा आंदोलन के शहीदों की याद में मनाया जाता है यह दिन

सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। 21 फरवरी को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाती है। मगर, क्यों। इसकी पृष्ठभूमि में वर्ष 1952 का बांग्ला भाषा आंदोलन है। पाकिस्तान सरकार बांग्ला भाषा को मान्यता नहीं दे रही थी।

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अपने बहुसंख्यकों की मूल भाषा व अपनी राजभाषा उर्दू को ही अपने बांग्ला भाषी बहुल क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भी अनिवार्य रूप से लागू करना चाहती थी। मगर, पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषियों को यह कतई मंजूर नहीं था। इसके खिलाफ बांग्ला भाषा आंदोलन शुरू हुआ। उर्दू व बांग्ला भाषा विवाद को लेकर उपजे आंदोलन के दौरान 21 फरवरी 1952 को ढाका में बांग्ला भाषा प्रेमी छात्र-युवाओं का महाजुलूस निकला। उसे रोकने के लिए पाकिस्तान सरकार ने पहले से ही निषेधाज्ञा जारी कर रखी थी, मगर आंदोलनकारी माने नहीं। महाजुलूस निकाला ही। उस महाजुलूस पर पुलिस की फायरिंग हुई। उसमें अब्दुस्सलाम, रफीकुद्दीन अहमद, अबुल बरकत, अब्दुल जब्बार, सलाहुद्दीन व अताउर्रहमान आदि कई छात्र-युवा शहीद हो गए।

मातृभाषा के चलते शहादत की यह विश्व इतिहास की पहली व संभवत: अंतिम घटना थी। इस आंदोलन का बहुत असर पड़ा। पाकिस्तान सरकार बाध्य हुई। वर्ष 1956 में बांग्ला भाषा को भी अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। मातृभाषा के लिए शहादत भरे इस आंदोलन को पूरे विश्व ने भी सराहा। वर्ष 1999 में यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने मातृभाषा के लिए ऐतिहासिक 21 फरवरी को अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया। उसके बाद वर्ष 2000 से पूरी दुनिया हर साल 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाती है। अब यह दिन हरेक मातृभाषा प्रेम का प्रतीक बन गया है। 


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