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मानव बन गया जानवर तो हाथी भी नहीं रहे साथी

जंगल में अतिक्रमण के चलते शहर की ओर रुख कर लेते हैं जंगली जानवर, अब तक ट्रेन से कटकर 60 हाथियों की हो चुकी है मौत।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 10:50 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 10:50 AM (IST)
मानव बन गया जानवर तो हाथी भी नहीं रहे साथी
मानव बन गया जानवर तो हाथी भी नहीं रहे साथी

सिलीगुड़ी, शिवानंद पांडेय । पहली मई 1971 को एक फिल्म जारी हुई थी। उसका नाम था हाथी मेरे साथी। जब-जब किसी जंगली जानवर की हत्या की जाती है, या वह किसी इंसानी सुविधा की भेंट चढ़ता है तो इस फिल्म का एक गाना आज भी लोगो की जुबान पर बरबस आ ही जाता है। जब मानव जंगलों में अतिक्रमण कर अपनी सुविधाएं तलाशने लगा तो हाथी भी मानव बस्तियों की ओर रुख करने लगे। इसका खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ रहा है।

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हर साल औसतन 50 मनुष्यों की तो 10 हाथियों को आपसी लड़ाई में जान गंवानी पड़ रही है। इसमें खास बात यह है कि हाथियों की ज्यादातर मौत ट्रेन की चपेट में आने से हो रही है। उत्तर बंगाल के आठ जिले चाय व पर्यटन उद्योग के अलावा जल, जंगल व जानवर के लिए मशहूर हैं। जंगल है तो जानवरों का उसमें रहना स्वाभाविक है। पर, हकीकत कुछ और है। जिस तरह से जंगलों की कटाई हो रही है, जंगल में अतिक्रमण हो रहा है, वह जंगली जानवरों के लिए खतरे की घंटी है।

जानवर जंगल छोडऩे को विवश होने लगे हैं। दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी व अलीपुरद्वार जिले के ज्यादातर भाग जंगलों से घिरे हुए हैं। पूर्व में असम बार्डर पर स्थित संकेश नदी है तो पश्चिम में भारत नेपाल सीमा पर मेची नदी है, जो जंगल बहुल क्षेत्र से गुजरी है। बक्सा टाइगर रिजर्व, गोरूमारा नेशलन पार्क, जल्दापाड़ा नेशनल पार्क, जलपाईगुड़ी विभाग, बैकुंठपुर विभाग, महानंदा वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी, नेवरा नेशनल पार्क, कलिंपोंग, कलिंपोंग विभाग व कर्सियांग क्षेत्र इसी इलाके में है।

पर्यावरणविद् व हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (नैफ) के कार्यक्रम समन्वयक अनिमेष बोस ने बताया कि ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों द्वारा जंगलों के बीच से सड़क व रेल मार्ग का निर्माण कराया गया। चाय बागान स्थापित किए गए। देश की आजादी के बाद जंगल बहुल क्षेत्रों में सेना व अर्धसैनिक बलों की छाी स्थापित की गई। इससे जंगल का कई भागों में विभाजन हो गया।

जंगलों के अतिक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित हाथी हुए हैं। हाथी टेरिटोरियल में नहीं, बल्कि माइग्रेटियर श्रेणी में आता है। यानी इनको एक दायरे में घेर कर नहीं रखा जा सकता है। स्वभावगत विचरण ही इनकी जान का दुश्मन बना है। एक जंगल से दूसरे जंगल में जाते हैं। रास्ते में मक्का व धान व अन्य तरह की फसलों को खाने लगते हैं। फसल बचाने के लिए उन पर हमला किया जाता है। लोग पटाखे व बंदूक की गोली दागते हैं। इसमें कभी हाथियों के हमले में नागरिकों की मौत हो जाती है, तो कभी बंदूक अथवा अन्य तरीकों से किए जाने वाले हमले से हाथियों की मौत हो जाती है।

यही वजह है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा मानव-हाथी में टकराव इन्हीं क्षेत्रों में होता है। इसमें हर साल औसतन 10 हाथी व 50 मनुष्यों की मौत हो जाती है। वर्ष 2016 के नवंबर में उत्तर बंगाल के लटागुड़ी में जंगल से निकले हाथी को फोटो ले रहे विभाग के ही कर्मचारी को पैर से कुचल कर मार दिया। हाथी जंगल से बाहर आते रहते हैं। ग्रामीणों पर हमला कर उनको मारते हैं या उनके घरों व फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।

ट्रेनों से कटकर हाथियों की होती हैं सर्वाधिक मौतें, डूवार्सगामी रेल लाइन, चाय बागानों में कीट नाशक के छिड़काव व खेतों में। विद्युत प्रवाहित तार की घेराबंदी के कारण पिछले 10 वषों में सबसे ज्यादा हाथियों की मौत हुई है। इस अवधि में जहां विद्युत की चपेट में आने से 10 हाथियों की मौत हुई है, वहीं पिछले 12 वषों में सिलीगुड़ी जंक्शन-अलीपुरद्वार रेल खंड में ट्रेनों से कटकर 60 हाथियों की मौत हो चुकी है।

पिछले 16 वषों का आंकड़ा देखें तो ट्रेन समेत अन्य दुर्घटनाओं में 125 हाथियों की मौत हो चुकी है। 2016 में ही बैकुंठपुर फॉरेस्ट डिवीजन के जंगल से निकले हाथी ने निकलकर सिलीगुड़ी शहर में घंटों तांडव मचाया था। नक्सलबाड़ी प्रखंड अंतर्गत खेत में लगाए गए विद्युत तार की चपेट में आने से चार हाथियों की मौत हो गई थी। इसके अलावा पिछले वर्ष नक्सलबाड़ी प्रखंड में ही दो हाथियों की मौत होने का मामला सामने आया था। इस महीने छह जुलाई को भी डूवार्स क्षेत्र के बानरहाट में ट्रेन की चपेट में आने से दो हाथियों की मौत हो गई थी। अभी गत 25 जुलाई को ही सुकना के पास सिमलबाड़ी इलाके में खेत की घेराबंदी में प्रयुक्त विद्युत प्रवाहित तार की चपेट में आने से एक हाथी की मौत हुई थी।

उत्तर बंगाल में पिछले दो वषों में हाथियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। सात सौ ज्यादा हाथी उत्तर बंगाल के जंगलों में हैं। मानव-हाथी द्वंद रोकने के लिए  प्राणी विभाग की ओर से विभिन्न तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। चाय बागान वाले क्षेत्रों समेत विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोगों को लेते हुए एक वोल्यूंटरी स्क्वॉड गठित किया गया है।

खेतों की तारों से घेराबंदी कर उसमें इलेक्टिक प्रवाहित करना तथा उसकी चपेट में आने से हाथियों की मौत के मामलों में भी  प्राणी विभाग कार्रवाई करता है। फसलों की रक्षा के लिए खेतों में विद्युत प्रवाहित तार से घेराबंदी नहीं किया जा सकती। यह च्एलिफेंट डेथ ट्रीटेड अंडर नेशनल वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972’ के तहत गैर कानूनी है। -उज्‍जवल घोष, चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (वाइल्ड लाइफ)


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