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चीन से तनातनी के बीच कमजोर बाघ पुल ने उड़ाई सुरक्षा विशेषज्ञों की नींद

-कुछ साल पहले भूकंप के कारण आ गई है कई दरारें -1

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 06:48 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 06:53 PM (IST)
चीन से तनातनी के बीच कमजोर बाघ पुल ने उड़ाई सुरक्षा विशेषज्ञों की नींद
चीन से तनातनी के बीच कमजोर बाघ पुल ने उड़ाई सुरक्षा विशेषज्ञों की नींद

-कुछ साल पहले भूकंप के कारण आ गई है कई दरारें

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-18 टन से अधिक भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक

- वैकल्पिक पुल बनाने का प्रस्ताव फाइलों में ही बंद

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पूरी तैयारी

-सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर सुरक्षा एजेंसियों की खास नजर

-चीन के साथ ही भारत-भूटान और नेपाल सीमा पर भी अलर्ट

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लाख रुपये से हुआ था पुल का निर्माण

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किमी दूर है शहर से यह पुल

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अशोक झा, सिलीगुड़ी : पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी। इस शहर से 22 किलोमीटर दूर है सेवक में तीस्ता नदी पर बना बाघ पुल। इसे कोरोनेशन ब्रिज भी कहते हैं। देश की आजादी के पहले ही इस पुल का निर्माण हुआ है। इतने सालों बाद यह पुल कमजोर होने लगा है। भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक है। इन दिनों भारत और चीन के बीच तनातनी है। युद्ध जैसे हालात लगातार बने हुए हैं। ऐसे में इस पुल के कमजोर होने से रक्षा विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है। भारत-चीन सीमा डोकलाम या पूर्वोत्तर राज्यो की सीमा पर तनाव बढ़ने पर इस पुल की भूमिका अहम होगी। यही कारण है सुरक्षा के दृष्टिकोण से इस पुल की चर्चा तेज हो गयी है। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के समय भी यहा वैकल्पिक पुल बनाने का निर्णय हुआ था। तब एक टीम ने यहां आकर सर्वेक्षण भी किया था। एक रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी गई थी। उसपर अमल नहीं होने और वामो की सत्ता चले जाने पर यह मामला ठंढे बस्ते में चला गया।

पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से जोड़ने में सिलीगुड़ी कॉरिडोर और आस-पास के इलाके को चिकेन नेक भी कहा जाता है। इसी इलाके में मौजूद तीस्ता नदी पर बना कोरोनेशन ब्रिज मरम्मत की बाट जोह रहा है। इस ब्रिज के जरिए ही उत्तर बंगाल पूर्वोत्तर भारत से जुड़ता है। देश विदेश से आने वाले पर्यटक भी इसे देखने आते हैं। आजादी से पहले बना यह पुल अब खस्ताहाल है। इसमें बड़ी दरारें आ गई हैं। कुछ साल पहले भूकंप ने इस पुल को काफी कमजोर कर दिया है। यदि चीन के साथ युद्ध हुआ तो डोकलाम सीमा पर साजो समान भेजने में सेना को थोड़ी परेशानी आ सकती है। इसबीच, भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए ड्रैगन की हर चाल पर नजर रखते हुए सुरक्षा एजेंसी सिलीगुड़ी कॉरिडोर को पूरी तरह मजबूत करने में लगी है। बढ़ते तनाव के बीच भारत सरकार ने बुधवार को नाथुला के साथ ही भूटान और नेपाल सीमा को भी अलर्ट कर दिया है।

इसको लेकर सिलीगुड़ी महकमा में रहने वाले एक पूर्व ब्रिगेडियर और मेजर जो कई युद्ध देख चुके हैं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सिलिगुड़ी कॉरिडोर सबसे ज्यादा संवेदनशील है। यही कारण है कि सीएए के विरोध में आंदोलन के दौरान कहा गया था कि उत्तर-पूर्व के राज्यों को जोड़ने वाली सिलिगुड़ी कॉरिडोर को मुस्लिम बंद करा देंगे और वह भारत के नक्शे से कट जाएगा।

अंग्रेजों ने इस पुल को पूर्वोत्तर भारत को बंगाल से जोड़ने के लिए बनाया था। इस पुल से होकर ही सेना के भारी साजो-सामान पूर्वोत्तर आते-जाते रहते हैं। चिकेन नेक कॉरिडोर के नजदीक बने इस पुल को रणनीतिक और सामरिक महत्व हासिल है। अलीपुरद्वार के भाजपा नेता व लोकसभा सासद जॉन बारला और जलपाईगुड़ी के सासद डॉ जयंत राय ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए एक वैकल्पिक पुल के निर्माण की माग की थी। दाíजलिंग के सासद राजू बिष्ट ने कहा है कि नए पुल की माग को लेकर वे सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिले थे। मंत्री ने इस इलाके में नए पुल बनाने की माग को स्वीकर कर लिया है। अब जो देरी है राज्य सरकार की ओर से है। जैसे ही राज्य सरकार इसके निर्माण की अनुमति देगी,यहा नया वैकल्पिक पुल का निर्माण शुरू हो जाएगा। दूसरी ओर राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव ने केंद्र सरकार पर ही निशाना साधा है। उनका कहना है कि तीस्ता नदी पर एक नया पुल बनाने की जरूरत है। इस सिलसिले में राज्य सरकार ने अपनी भूमिका पूरी कर ली है, लेकिन केंद्र इस पर लगातार देरी कर रही है।

अब इस प्रकार के बयानों से स्पष्ट है कि नया पुल बनने पर राज्य व केंद्र की सरकार यानी भाजपा और तृणमूल श्रेय लेने की कोशिश करेगी। भाजपा इस पुल के निर्माण से तराई, डुवार्स व हिल्स के लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि वह इस सीमावर्ती क्षेत्र के लिए चिंतित है। इतना ही नहीं चीन के खिलाफ जारी जंग में चीन के साथ सटे हर मोर्चे पर तनाव के बीच भारत इन इलाकों में अपनी बुनियादी सुविधाएं मजबूत कर रहा है। समय आने पर मुसीबत के वक्त इन इलाकों में हमारी सेना और संसाधन बिना देरी के पहुंच सके। 1937 में शुरू हुआ था पुल का निर्माण

यह पुल 1937 में बनना शुरू हुआ। चार वर्षो यानी 1941 में चार लाख की लागत में बनकर तैयार हुआ था। 18 सितंबर 2011 में 6.9 की तीव्रता के भूकंप से इस पुल में कई दरारें आ गई है। राज्य के जादवपुर यूनिवíसटी ने अपने अध्ययन में इस पुल के बीच में 2.5 फीट का दरार पाया था। इसके बाद राज्य सरकार ने इस पुल से 18 टन से भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। हालाकि लोगों का कहना है कि रोक सिर्फ कागजों पर ही है।

नए पुल बनाने की माग को लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिले थे। उन्होंने नए पुल बनाने की माग को स्वीकर कर लिया है। अब जो देरी है राज्य सरकार की ओर से है। जैसे ही राज्य सरकार इसके निर्माण की अनुमति देगी,यहा नया वैकल्पिक पुल का निर्माण शुरू हो जाएगा। -राजू बिष्ट,सांसद,दार्जिलिंग

--------------- तीस्ता नदी पर एक नया पुल बनाने की जरूरत है। हम भी शीघ्र पुल का निर्माण चाहते हैं। इस सिलसिले में राज्य सरकार ने अपनी भूमिका पूरी कर ली है। इस पर फैसला केंद्र सरकार को करना है। लेकिन केंद्र इस दिशा में देरी कर रही है। राज्य सरकार की ओर से कोई समस्या नहीं है।

-गौतम देव,पर्यटन मंत्री


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