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दिव्‍यांग क्रिकेट वर्ल्‍ड कप विजेता टीम में शामिल रहे अब्‍दुल खालेक, अब सिलीगुड़ी में गुजार रहे गुमनामी की जिंदगी

लाइफ में कुछ नहीं है घिसी-पिटी जिंदगी चल रही है। यह कहना है वर्ष 2019 के दिव्यांग क्रिकेट की वर्ल्‍ड कप विजेता भारतीय टीम के ऑल राउंडर अब्दुल खालेक का। सिलीगुड़ी के निवासी अब्‍दुल क्रिकेट की कड़ी साधना के बावजूद क्रिकेट छोड़ने को मजबूर हुए।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Mon, 29 Aug 2022 05:48 PM (IST)Updated: Mon, 29 Aug 2022 05:48 PM (IST)
दिव्‍यांग क्रिकेट वर्ल्‍ड कप विजेता टीम में शामिल रहे अब्‍दुल खालेक, अब सिलीगुड़ी में गुजार रहे गुमनामी की जिंदगी
भारतीय दिव्‍यांग क्रिकेट टीम के ऑल राउंडर अब्दुल खालेक। फोटो सौजन्‍य: परिवार।

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। 'लाइफ में कुछ नहीं है, घिसी-पिटी जिंदगी चल रही है।' यह कहना है वर्ष 2019 के दिव्यांग क्रिकेट की वर्ल्‍ड कप विजेता भारतीय टीम के ऑल राउंडर अब्दुल खालेक का। 12 वर्षों की क्रिकेट साधना के बाद कुल हासिल अब यही है कि वह अपना घर-परिवार चलाने को क्रिकेट छोड़ कर एक मोबाइल कंपनी के वितरक के अधीनस्थ मार्केटिंग का काम करने को मजबूर हैं।

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सिलीगुड़ी के वार्ड 31अंतर्गत शक्तिगढ़ के निवासी अब्दुल खालेक कहते हैं कि 2019 में जब वे वर्ल्‍ड कप जीत कर इंगलैंड से लौटे थे, तब उन्‍हें कुछ सराहना मिली थी। उसके बाद से सब कुछ काफूर हो गया। अब कोई पूछने वाला भी नहीं है। परिवार में धर्मपत्नी व पांच महीने के पुत्र की देख-रेख के लिए उन्हें कुछ न कुछ तो करना ही था, सो वह एक मोबाइल कंपनी में मार्केटिंग का काम कर रहे हैं। इससे किसी तरह घर-परिवार का गुजारा हो जाता है। इसके लिए वह वितरक बजरंग गोयल का  शुक्रिया भी अदा करते हैं कि उन्होंने विकट समय में सहारा दिया।

वे देश व समाज में दिव्यांगों के खेल एवं दिव्यांग खिलाडिय़ों की उपेक्षा को रेखांकित करते हुए  मायूसी का इजहार करते हैं। वह कहते हैं कि उनकी जानकारी में कोलकाता में एक क्रिकेटर है, जिसने बस राज्य स्तर तक ही कुछ उपलब्धि हासिल की है, बावजूद उसे खूब सम्मान मिला। यहां तक कि, नगर निगम में नौकरी भी मिल गई। यह सब इसलिए कि, सामान्य क्रिकेट व क्रिकेटरों के जलवे ही अलग हैं। वहीं हम दिव्यांग, वर्ल्‍ड कप जीत आए लेकिन, हमारी कोई पूछ नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि आम क्रिकेट के आम लोग भी बड़े खास हो जाते हैं लेकिन खास क्रिकेट यानी दिव्यांग क्रिकेट के खास लोग भी बहुत आम ही रह जाते हैं। जबकि दिव्यांग खिलाडिय़ों व उनके खेलों को भी महत्व दिया जाना चाहिए। अब तक दिव्यांगों के खेलों को उस स्तर पर सरकारी मान्यता, सहयोग व सुविधाएं ही नहीं मिल पाई हैं जिस स्तर पर मिलनी चाहिए। ऐसे में कोई दिव्यांग चाह कर भी क्या कर पाएगा? कहां तक अपनी प्रतिभा को अपना संबल बना पाएगा? अब्‍दुल ने कहा कि दिव्यांगों को जरा सा संबल मिल जाए तो वह भी बड़ी से बड़ी मिसाल कायम कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि पहली बार वर्ष 2019 में इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) की ओर से इंग्लैंड के वर्कसेस्‍टर में दिव्यांग क्रिकेट वर्ल्‍ड कप सीरीज आयोजित किया गया था। उसमें मेजबान इंग्लैंड, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान की टीम शामिल हुई थीं। खिताबी मुकाबले में क्रिकेट के जनक इंग्लैंड को उसकी ही धरती पर हरा कर भारतीय दिव्यांग क्रिकेटरों ने वर्ल्‍ड कप अपने देश भारत के नाम किया था। उन क्रिकेटरों में एक सिलीगुड़ी के अब्दुल खालेक भी थे।

जन्मजात एक छोटे पांव वाले दिव्यांग खालेक ने अपने क्रिकेट जीवन की शुरुआत वर्ष 2010 में की। उन्होंने पहले कुछ महीनों के लिए स्थानीय यंग मेंस एसोसिएशन (वाईएमए) व फिर लगातार छह-सात साल जागरणी संघ (डाबग्राम) का हो कर क्रिकेट का प्रशिक्षण लिया व खेला। 2012 में मुंबई में क्षेत्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता में पश्चिम बंगाल की टीम का हिस्सा रहे। 2012 में भारतीय टीम में मौका मिला। वह पाकिस्तान भी गए। वहां पाकिस्तान की टीम के साथ तीन एकदिवसीय मैचों की श्रृंखला एवं दो टी-20 मैचों की श्रृंखला आयोजित हुई। सारे मैच में भारतीय टीम ही जीती। पाकिस्तान शून्य रहा।

उसके बाद 2013 में पाकिस्तान की टीम हरियाणा के भिवानी आई तो वहां भी 3 टी-20 मैचों श्रृंखला में भारतीय टीम से 3-0 से हार गई। 2014 में ये लोग अफगानिस्तान गए। मगर, वहां 3 टी-20 मैचों की श्रृंखला में बेहतर नहीं कर पाए। भारतीय टीम 2-1 से पिछड़ गई। 2016 में ये लोग बांग्लादेश गए तो वहां से भी 3 टी-20 मैचों की श्रृंखला 2-1 से जीत कर आए। फिर, 2017-18 में क्षेत्रीय एवं राज्य स्तरीय श्रृंखला में बेहतर प्रदर्शन किया। 2019 में तो इंग्लैंड में जा कर इंग्लैंड को उसकी ही धरती पर हरा कर वर्ल्‍ड कप जीत आए। वह खुशी कुछ ही दिन रही कि कोरोना वायरस महामारी आ गई । अब जब कोरोना का असर भले कम हो गया है लेकिन उनकी जद्दोजेहद कम नहीं हुई है।


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