आठ किलो की फूल गोभी.. बाप रे बाप..
-सिलीगुड़ी क्षेत्र में भी ऑर्गेनिक खेती ने पकड़ा जोर -अच्छी पैदावार कर किसान हो रहे हैं
-सिलीगुड़ी क्षेत्र में भी ऑर्गेनिक खेती ने पकड़ा जोर
-अच्छी पैदावार कर किसान हो रहे हैं मालामाल
-कोफाम के तकनीकी सहयोग का दिखने लगा है असर
-प्रशिक्षण लेने के लिए किसानों में बढ़ी उत्सुकता शिवानंद पांडेय
सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल में आर्गेनिक खेती के प्रति जैसे-जैसे किसानों की उत्सुकता बढ़ रही है वैसे-वैसे उनको अपेक्षित सफलता भी मिलने लगी है। ऑर्गेनिक खेती कर किसान अपने पैदावार को बढ़ाने में सफल हो रहे हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण सिलीगुड़ी से सटे जलपाईगुड़ी जिले के आमबाड़ी में देखने को मिला है। यहां के किसान आर्गेनिक पद्धति से खेती कर सात से आठ किलोग्राम की एक-एक फूल गोभी उगा रहे हैं। यह अपने आप में बड़ी बात है। गोभी समेत अन्य सब्जियों की खेती करने वाले एक किसान मनोज सरकार ने बताया कि आर्गेनिक पद्धति से खेती करने का प्रशिक्षण उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, सेंटर ऑफ फ्लोरिकल्चर एंड एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) में प्राप्त किया था। एनबीयू बॉयो टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रणधीर चक्रवर्ती के निर्देशन व तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय के तकनीकी सहयोग व कड़ी मेहनत से यह सफलता हासिल हो सकी। उसने बताया कि डेढ़ बीघा जमीन में आर्गेनिक पद्धति से खेती कर रहे हैं। चार साल पहले आर्गेनिक खेती के लिए जमीन तैयार करने लगे थे। वर्मिग कंपोस्ट, जलकुंभी समेत अन्य प्राकृतिक तत्वों से खेत की मिट्टी को आर्गेनिक खेती योग्य बनाया गया। उन्होंने बताया कि खेत में गोभी, बैगन, धनियां पत्ता समेत अन्य सब्जियों के पौधे लगाते हैं। उन्होंने बताया कि गोभी के पौधे पिछले वर्ष नवंबर लगाए थे। जब गोभी में फूल लगना शुरू हुआ तो उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि इतने वजन के गोभी की पैदावार करेंगे। उन्होंने बताया कि खेती के दौरान एनबीयू बॉयो टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रणधीर चक्रवर्ती से सुझाव व तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय से तकनीकी सहयोग मिलता रहा है। अब तो ऑर्गेनिक तकनीक से खेती के प्रशिक्षण के लिए किसानों में भी काफी उत्सुकता बढ़ने लगी है।
कोफाम के तकनीकि अधिकारी अमरेंद्र पांडेय ने बताया कि आम तौर गोभी के फूल ढाई से तीन किलोग्राम के होते हैं। यहां तक कि हाईब्रिड गोभी का वजन भी इतना नहीं होता है। आर्गेनिक पद्धति से इतने वजन का गोभी उगाना बड़ी बात है। उन्होंने भी कहा कि उस किसान सरकार को समय-समय पर आर्गेनिक खेती के लिए मिट्टी तैयार करने,वर्मिग कंपोस्ट की मात्रा आदि की जानकारी दी जाती रही है। यहां तक कि खेतों में जाकर भी साक-सब्जियों का निरीक्षण करते हैं और जरूरी सलाह देते हैं।
उन्होंने बताया कि अगर आर्गेनिक पद्धति से फल, फूल व सब्जी का उत्पादन होता है तो इससे फसल की बर्बादी नहीं होती है। जिससे उद्यमियों को नुकसान नहीं उठाना पड़ता है। उनको सब्जियों की कीमत भी अच्छी मिलती है। उन्होंने कहा कि एनबीयू में समय-समय आर्गेनिक पद्धति से खेती करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें किसानों को आर्गेनिक साक-सब्जी के अलावा स्ट्रॉबरी, ड्रैगन फ्रुट्स व रेड लेडी पपैया कल्टिवेशन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।