Bengal Assembly Elections 2021: सिलीगुड़ी विधानसभा- अभी भी याद है वोट दिन, 1951 में ही हो गया विधानसभा सीट का गठन
Bengal Assembly Elections 2021 सिलीगुड़ी विधानसभा- अधिकांश मौकों पर कांग्रेस और वामो का कब्जा रहा है। भाजपा को जीत के लिए करना पड़ रहा है इंतजार। गांधी मैदान में सिद्धार्थ शंकर रे ने की थी जनसभा 1977 में वाम मोर्चा के उफान के साथ कांग्रेस का हुआ अंत।
सिलीगुड़ी, विपिन राय। राज्य विधानसभा चुनाव तिथियों की घोषणा हो चुकी है। अब धीरे-धीरे चुनाव प्रचार ने भी जोर पकड़ लिया है। आने वाले कुछ दिनों में पूरे राज्य के साथ-साथ सिलीगुड़ी विधानसभा क्षेत्र में भी चुनावी पारा उफान पर होगा। सिलीगुड़ी विधानसभा सीट पर हर पार्टी की निगाहें टिकी हुई है। क्योंकि सिलीगुड़ी राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और इसे एक तरह से उत्तर बंगाल की अघोषित राजधानी भी कहा जाता है। लेकिन किस पार्टी का कब्जा इस अघोषित राजधानी पर होगा यह कहा नहीं जा सकता। क्योंकि वर्ष 1951 से लेकर अब तक अधिकांश मौकों पर इस सीट पर कांग्रेस या फिर वाम मोर्चा का ही कब्जा रहा है। यही कारण है कि यहां के पुराने मतदाताओं को अभी भी दो पार्टियों के चुनावी नारे याद हैं। कांग्रेस का वोट दिन, जोड़ा पत्ता वोट दिन और वाम मोर्चा का वोट देबेन कोन खाने, कास्ते हाथरा माछ खाने। मतलब वोट दें- वोट दें जोड़ा पत्ता वोट दें तथा वोट कहां देंगे, कचिया हथौड़ा के बीच में देंगे।
सिलीगुड़ी विधानसभा ऐसी सीट से कांग्रेस ने 6 बार तो, वाम मोर्चा ने नौ बार बाजी मारी है। जबकि तृणमूल कांग्रेस को एक बार इस सीट पर जीत का स्वाद चखने को मिला है। भाजपा अभी भी जीत का इंतजार कर रही है। पांचवें चरण में 17 अप्रैल को सिलीगुड़ी विधानसभा सहित दार्जिलिंग जिले के सभी 5 सीटों पर मतदान होना है। इस बार विधानसभा सीट पर किसका कब्जा होगा यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन पुराने मतदाता पहले और अब के चुनाव में काफी फर्क होने की बात कर रहे हैं। इनका कहना है कि तब का माहौल अलग था और अब का माहौल अलग है। पहले राजनीति में समाज सेवा और भाईचारा था। अब कटुता बहुत अधिक हो गई है। राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार एक दूसरे को हराने के लिए किसी भी स्तर पर जा रहे हैं।
यहां बता दें कि, सिलीगुड़ी विधान सभा का गठन वर्ष 1951 में हो गया था। तब सिलीगुड़ी और कर्सियांग को मिलाकर एक विधानसभा क्षेत्र था। 1951 से लेकर वर्ष 2016 तक इस विधानसभा सीट पर 9 बार वाम मोर्चा उम्मीदवारों ने बाजी मारी है,तो 6 बार कांग्रेस की जीत हासिल हुई है। वर्ष 1977 से पहले अधिकांश समय तक इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा था। 1977 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और वामो ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे चुनाव प्रचार के लिए सिलीगुड़ी आए थे। उस समय जोड़ा पत्ता चुनाव चिन्ह के अलावा हलदर किसान चुनाव चिन्ह भी लोगों को याद है। सिलीगुड़ी के वार्ड 8 के रहने वाले कमल कुमार गोयल का कहना है कि उस समय वह काफी छोटे थे। उन्हेंं याद है कि तब सिद्धार्थ शंकर रे गांधी मैदान आए थे। जोड़ा पत्ता वोट दिन नारा काफी चर्चित हुआ था।
पश्चिम बंगाल में पहला विधानसभा चुनाव 1951 में हुआ था। तब इस सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तेनजिंग वाग्दी ने बाजी मारी थी। हालांकि 1957 के चुनाव में कांग्रेस हार गई। तब सत्येंद्र नारायण मजूमदार माकपा उम्मीदवार के रूप में सिलीगुड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे थे। वर्ष 1962 और 1967 में कांग्रेस का फिर से इस सीट पर कब्जा हो गया। पहले तेनजिंग वांग्दी और उसके बाद जगदीश चंद्र भट्टाचार्जी और फिर अरूण कुमार मोइत्रा चुनाव जीते। 1969 के विधानसभा चुनाव में अखिल भारतीय गोरखा लीग के प्रेम थापा जीत का स्वाद चखने में सफल रहे। उसके बाद से इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा।
1977 में पूरे राज्य में सत्ता परिवर्तन का दौर था। तब माकपा ज्योति बसु के नेतृत्व में एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरी थी। पूरे राज्य में वाम मोर्चा के पक्ष में आंधी चल रही थी। 77 के चुनाव के बाद ही पश्चिम बंगाल में एक तरह से कहें तो कांग्रेस का अंत हो गया। 1977 के बाद से कभी भी कांग्रेस राज्य के सत्ता में नहीं आई। सिलीगुड़ी विधानसभा सीट से 1977 में माकपा उम्मीदवार वीरेन बोस जीते। 1982 के विधानसभा चुनाव में भी वही जीतने में सफल रहे। 1987 के चुनाव में माकपा के गौर चक्रवर्ती जीते। जबकि 1991 से लेकर 2006 तक लगातार चार बार अशोक भट्टाचार्य माकपा उम्मीदवार के रूप में यहां से चुनाव जीतते रहे। वह तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार में 20 साल तक मंत्री भी रहे।
परिवर्तन की आंधी में उड़ गए थे अशोक
हांलाकि 2011 के चुनाव में अशोक भट्टाचार्य को हार का सामना करना पड़ा। 1977 की तरह ही 2011 में राज्य में परिवर्तन की लहर चल रही थी। जिस तरह से कांग्रेस का पतन हो गया था उसी तरह से वर्ष 2011 में वाममोर्चा का भी अंत हो गया। परिवर्तन की आंधी में अशोक भट्टाचार्य भी उड़ गए। उन्हेंं तृणमूल कांग्रेस के डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने हराया था। हालांकि उसके अगले ही विधानसभा चुनाव वर्ष 2016 में अशोक भट्टाचार्य एक बार फिर से सिलीगुड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे।
कलवार समाज सचिव भरत कुमार गुप्ता- मैं संभवत: 1972 से मतदान करता रहा हूं। पहले चुनाव में इतनी कटुता नहीं थी। आपस में प्यार मोहब्बत भी काफी था। राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के बीच भी भाईचारा कायम रहता था। अब काफी कुछ बदल चुका है। चुनाव में कड़वाहट बढ़ती जा रही है। भाईचारा भी नहीं रह गया है।
उत्तर बंगा मारवाड़ी सेवा ट्रस्ट पूर्व सचिव हनुमान डालमिया- मैं वर्ष 1984 में सिलीगुड़ी आया। मेरी उम्र 68 साल है। वर्ष 1985 में मैंने यहां किसी चुनाव में शायद पहली बार मतदान में हिस्सा लिया होगा। तब और अब के चुनाव में काफी फर्क है। अब तामझाम काफी अधिक हो गया है। पहले बोगस मतदान भी होता था। अब ऐसा नहीं है। अब बगैर पहचान पत्र के मतदान करने नहीं दिया जाता।
सिलीगुड़ी मर्चेंट एसोसिएशन ट्रेजरर कमल कुमार गोयल- पहले और अब के चुनाव में काफी फर्क आ गया है। लोग जागरूक हो गए हैं। मतदान का प्रतिशत काफी बढ़ गया है। हालांकि चुनाव में हिंसा के कारण डर ही लगता है। उसके बाद भी लोग काफी संख्या में अपने घरों से निकलते हैं और मतदान करते हैं। मैंने पहली बार नगरपालिका चुनाव में वोट दिया था।