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शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए बोले सांसद राजू बिष्ट, उनके सपनों को हम जरूर पूरा करेंगे यह मेरा संकल्प है

बंगाल से मुक्ति और अलग राज्य गोरखालैंड आंदोलन में सन 1986 से 2017 में मारे गए शहीदों की याद में 27 जुलाई यानि सोमवार को हिल्स तराई व डुवार्स में शहीद दिवस मनाया गया।

By Vijay KumarEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 06:02 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 06:02 PM (IST)
शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए बोले सांसद राजू बिष्ट, उनके सपनों को हम जरूर पूरा करेंगे यह मेरा संकल्प है
शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए बोले सांसद राजू बिष्ट, उनके सपनों को हम जरूर पूरा करेंगे यह मेरा संकल्प है

अशोक झा, सिलीगुड़ी। बंगाल से मुक्ति और अलग राज्य गोरखालैंड आंदोलन में सन 1986 से 2017 में मारे गए शहीदों की याद में 27 जुलाई यानि सोमवार को हिल्स, तराई व डुवार्स में शहीद दिवस मनाया गया। लॉकडाउन होने के कारण आंदोलन से जुड़े लोग ओर समर्थक अपने- अपने तरीके से शहीदों को नमन कर रहे हैं। 2017 में अलग राज्य आंदोलन के दौरान राजनीतिक हिंसा के बाद से भूमिगत चल रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिमल गुरुंग ने विज्ञप्ति के माध्यम से शहीद गुड़गांव को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि शहीदों के सपनों को हम जरूर पूरा करेंगे यह मेरा संकल्प है। 27 जुलाई 1986 को कालिंगपोंग में अपनी अस्मिता के लिए प्राणों की आहुति देने वाले गोरखा संतान की कुर्बानी कभी बेकार नहीं  जाएगी। 113 वर्षो से चला आ रहा आंदोलन  जरूर रंग लाएगा। भाजपा नेता व दार्जिलिंग के भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि गोरखाओं की समस्या का स्थाई समाधान जरूर निकलेगा। अपने मेनिफेस्टो में भारतीय जनता पार्टी ने जो संकल्प जनता के सामने किया है वह पूरा होगा। बिष्ट ने हरिवंश राय बच्चन की कविता लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

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क्या है 27 जुलाई  का आंदोलन 

बंगाल से अलग होकर अलग राज्य गोरखालैंड की मांग आजादी के पूर्व से 1907 से शुरू हुईं थी। 1980 में गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा जीएनएलएफ के संस्थापक दिवंगत सुभाष घीसिंग ने अलग राज्य गोरखलैण्ड के लिए आंदोलन छेड़ दिया। वे तराई होटल्स को मिलाकर अलग राज्य करने के लिए भारत-नेपाल के बीच सुगौली संधि और पारगमन संधि 1950 को रद्द करने की मांग करते रहे। 27 जुलाई 1986 को उनकी अगुवाई में कालिंगपोंग में आंदोलन के बीच सीआरपीएफ की फायरिंग में 23 जीएनएलएफ़ आन्दोलनकारी मारे गए 50 से अधिक घायल हुए। 29 जुलाई को तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योतिबसू तीन सप्ताह के लिए यूरोप दौरे पर चले गए। इसकी काफी आलोचना हुई थी। 21 सितंबर 86 को माकपा व जीएनएलएफ़  के बीच लगातार संघर्ष होता रहा। इस हिंसक आंदोलन में  1988 तक 1300 से ज्यादा आंदोलनकारी, पुलिसकर्मी, माकपाई मारे गए। सैकड़ो बेघर हो गए। 25 जुलाई 1988 को त्रिपक्षीय वार्ता से गुरखा पर्वत परिषद का गठन किया गया। 

2017 में गोरखालैंड आंदोलन फिर प्रारंभ 

छठी अनुसूची का विरोध करते हुए अलग पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का गठन किया। अलग राज्य का आंदोलन शुरू हुआ। 2010 में  गोलीकांड में चार आंदोलनकारी मारे गए। आंदोलन उग्र हुआ। 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने से त्रिपक्षीय वार्ता में गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन यानी जीटीए का गठन किया। इसके चेयरमैन विमल गुरुंग बने रहे। समझौते के अनुसार अधिकार नहीं मिलने से नाराज विमल गुरुंग और उनके सभी साथियों ने फिर से 2017 में गोरखालैंड आंदोलन प्रारंभ किया।107 की बंदी ओर हिंसा में 11 आंदोलनकारी पुलिस की गोली के शिकार हुए दर्जनों घायल हुए। हिंसा की भेंट एक सब इंस्पेक्टर चढ़ गया उसके बाद से विमल गुरुंग ओर उनके 5000 समर्थक भूमिगत है। 


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