107वीं जयंती पर याद किए गए ज्योति बसु
- सादगी के साथ कार्यक्रम का आयोजन - नेताओं ने तस्वीर पर माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजलि जागरण संव
- सादगी के साथ कार्यक्रम का आयोजन
- नेताओं ने तस्वीर पर माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजलि
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :
बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु को उनकी 107वीं जयंती पर याद किया गया। कोरोना काल में पूरे सादगी के साथ कार्यक्रम का आयोजन हुआ। पार्टी कार्यालय अनिल विश्वास भवन समेत पूरे महकमा क्षेत्र के सभी पार्टी कार्यालय में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें लाल सलाम कहा गया। पार्टी नेता जीवेश सरकार, समन पाठक, जय चक्रवर्ती, मुंशी नुरूल इस्लाम,सौरव दास आदि ने उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला। बताया कि कामरेड ज्योति बसु का जन्म पूर्वी बंगाल जो अब बांग्लादेश है में 8 जुलाई 1914 को हुआ था। लंदन से वकालत त्यागकर वामपंथ की राजनीति को अपनाया और उसी के होकर रह गए। कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक, सुधारवादी और अनेक मामलों में वे एक इतिहास पेश करने वाले वामपंथी नेता थे। वे 23 साल तक पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ लगभग पाच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाये रहे। ज्योति बसु के व्यक्तित्व का ही करिश्मा था कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद विपक्ष के सभी नेता उनका लोहा मानते थे। 1977 में मार्क्सतवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे।
पार्टी के कहने पर ठुकरा दिया प्रधानमंत्री का पद
पूर्व मंत्री व माकपा के वरिष्ठ नेता अशोक नारायण भट्टाचार्य कहा कि गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार में प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया। इस तरह से ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो सका था। आज राजनीतिक नेता सत्ता के लिए एक पार्टी से दूसरे पार्टी में जाने से गुरेज नहीं करते। यह उनका पार्टी के प्रति समर्पण दर्शाता था। पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया। ज्योति बसु के कामों का लोहा उनके विपक्षी भी मानते थे।