इस बार विश्वकर्मा पूजा आज के साथ कल भी
-प्रतिमा खरीदने वालों की उमड़ी भीड़ -ट्रैफिक पुलिस ने भी की विशेष तैयारी -जाम की सम
-प्रतिमा खरीदने वालों की उमड़ी भीड़
-ट्रैफिक पुलिस ने भी की विशेष तैयारी
-जाम की समस्या से निपटने का खाका तैयार
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : कुछ स्थानों पर 17 व ज्यादातर स्थानों पर 18 सितंबर को विश्व निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाएगी। सिलीगुड़ी महकमा में कम से कम 10 हजार से अधिक स्थानों पर मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा पड़ोसी बिहार, सिक्किम, हिल्स, भूटान में भी मूर्तियां ले जायी जाती है। मूर्तियों की बिक्री के लिए सिलीगुड़ी जिला अस्पताल से लेकर विधान मार्केट, महावीर स्थान, पानीटंकी मोड़, दार्जिलिंग मोड़, मेडिकल मोड़, चंपासारी, एनजेपी आदि क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मूर्तियां बिकने आयी हुई है। मूर्तियों की खरीद बिक्री को लेकर वहां जाम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मूर्तियों को वाहन और ठेला पर चढ़ाने के लिए सड़क पर ही मूर्तियों को रखा जा रहा है। बाजार में जाम की समस्या उत्पन्न न हो इसके लिए यातायात पुलिस के साथ अतिरिक्त पुलिस बल की व्यवस्था की जाएगी। डीसीपी ईस्ट इंदिरा मुखर्जी ने बताया कि सभी थाना क्षेत्र को जाम की समस्या और पूजा पंडालों पर विशेष निगरानी रखने को कहा गया हैं।
शुभ मुहूर्त में पूजा, बढ़ेगा धन
महादेव ने ब्रह्मा विष्णु को अवतरित कर सृष्टि के सृजन और पालन की जिम्मेदारी सौंपी। इस जिम्मेदारी के निर्वाहन हेतु ब्रह्मा ने अपने वंशज देव शिल्पी विश्वकर्मा को तीनों लोकों का निर्माण का आदेश दिया था। भगवान विश्वकर्मा की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि उनके महत्व का वर्णन ऋगवेद में भी 11 ऋचाएं लिखकर की गई है। उनकी अनंत व अनुपमेय कृतियों में सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग में लंका, द्वापर में में द्वारका, कलयुग में जगन्नाथ मंदिर की विशाल मूर्ति आदि है। जिनकी संपूर्ण सृष्टि और कर्म व्यापार है वह विश्वकर्मा है। सहज भाषा में यह कहा जा सकता है कि संपूर्ण इसके द्वारा ही कर्मों से जीव का जीवन संचालित होता है। उनके पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक उर्जा देता है वहीं कार्य में आने वाले सभी अड़चनों को वह समाप्त करते है।
पूजा के लिए शुभ मुर्हूत
इस संबंध में पंडित हरि मोहन झा ने बताया कि भाद्रपद मास के अंतिम तिथि अर्थात बुधवार को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन होगा। भारत के कुछ भाग में मान्यता है कि अश्रि्वन मास के प्रतिपदा को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग सभी मान्यताओं के अनुसार यही एक ऐसा पूजा है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर तय होता है। इसलिए यह प्रत्येक वर्ष 18 सितंबर को आयोजित होता है। इस वर्ष वृश्चिक लग्न में पूजा होगा। सुबह 10.17 मिनट से दोपहर के 12.34 मिनट तक है। इस अवधि में पूजा अर्चना करने से विशेष लाभ मिलेगा।