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डीएचआर ट्वॉय ट्रेन को लेकर यूनेस्को में मतभेद

- विश्व धरोहर का दर्जा लेने की चल रही है अटकलें -रेलवे ने ऐसी खबरों को खारिज किया ज

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 07:14 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 07:14 PM (IST)
डीएचआर ट्वॉय ट्रेन को लेकर यूनेस्को में मतभेद
डीएचआर ट्वॉय ट्रेन को लेकर यूनेस्को में मतभेद

- विश्व धरोहर का दर्जा लेने की चल रही है अटकलें

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-रेलवे ने ऐसी खबरों को खारिज किया

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे डीएचआर के विश्व प्रसिद्ध ट्वॉय ट्रेन के विश्व धरोहर का दर्जा बरकरार रखने को लेकर यूनेस्को प्रबंधन में ही मतभेद उभरने लगा है। मिली जानकारी के अनुसार यूनेस्को मुख्यालय, पेरिस ने भारत में यूनेस्को कार्यालय से डीएचआर को लेकर बातचीत की है। यूनेस्को मुख्यालय ने मानदंडों को पूरा नहीें करने पर विश्व धरोहर का दर्जा छीन लेने की चेतावनी दी है। बताया कि डीएचआर साइट्स के अतिक्रमण, पटरियों पर गंदगी की समस्या सामने आयी है, जो कि यूनेस्को की गाइडलाइन के मुताबिक हेरिटेज साइट के खिलाफ है। मिली जानकारी के अनुसार पिछले दिनों पेरिस में यूनेस्को की हुई बैठक में डीएचआर पर चर्चा हुई थी। उसके बाद ही डीएचआर के विश्व धरोहर का दर्जा छीने जाने की बात होने लगी थी। हांलाकि अधिकारियों ने इसे निराधार बताया है। यह भी बताया गया है कि डीएचआर के संरक्षण को लेकर यूनेस्को मुख्यालय, पेरिस व यूनेस्को दिल्ली कार्यालय के बीच बातचीत से भारतीय रेलवे का कोई सीधा संबंध नहीं है।

बताया गया कि ढाई वर्ष पहले भारतीय रेलवे ने खुद यूनेस्को के साथ डीएचआर संरक्षण को लेकर तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु की उपस्थिति में एक योजना तैयार की थी। डीएचआर के संरक्षण तथा सर्वे कार्य के लिए रेलवे की ओर से लगभग चार करोड़ रुपये की राशि भी यूनेस्को को दी गई थी। यूनेस्को की ओर से इसका सर्वे कार्य किया जा रहा है। डीएचआर समेत अन्य स्टेक होल्डर के साथ कई दौर की बैठक भी हो चुकी है। यह भी कहा जा रहा है कि डीएचआर के संरक्षण के लिए कार्य करने वाले यूनेस्को के कुछ अधिकारियों को यूनेस्को प्रबंधन द्वारा दूसरे साइट पर तबादले से कइस तरह की चर्चा सामने लाई जा रही है। बताया यह भी गया कि लगभग 140 साल पुरानी दर्जिलिंग हिमालयन रेलवे (डीएचआर) के व‌र्ल्ड हेरिटेज का दर्जा खत्म होने वाला नहीं है।

-कमाई ने बिगाड़ा खेल

दार्जिलिंग टवॉय ट्रेन को यूनेस्को की तरफ से दिसंबर 1999 में विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया था। हालाकि अब इस ट्रेन के इनोवेशन और मेनटेनेंस से खेल बिगड़ गया है। रेलवे को पिछले कुछ सालों में ट्वॉय ट्रेन से होने वाली कमाई में कमी आई है, जबकि रख-रखाव का खर्च काफी अधिक है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे ने ट्वॉय ट्रेन से वित्त वर्ष 2016-17 में करीब 7.65 करोड़ रुपए की कमाई की, जबकि इसके रख-रखाव में 22.83 करोड़ रुपए का खर्च आया। वहीं वित्त वर्ष 2017-18 में गोरखा आदोलन और भू-स्खलन की वजह से कमाई 6.23 करोड़ रुपए रह गई। वित्त वर्ष 2018-19 के अक्टूबर माह तक दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे ने 8.80 करोड़ रुपए की कमाई की, जबकि खर्च 12.19 करोड़ रुपए आया। क्या कहना है डीआरएम का इधर,एनएफ रेलवे कटिहार डिवीजन के डीआरएम रवींद्र कुमार वर्मा ने डीएचआर के विश्व धरोहर का दर्जा वापस लिए जाने संबंधी खबरों को निराधार बताते हुए कहा कि डीएचआर के संपत्तियों के संरक्षण को लेकर यूनेस्को से जो समझौता हुआ है, इसके मुताबिक यूनेस्को के साथ कार्य किया रहा है।


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