Move to Jagran APP

जानें कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिनकी मूर्ति तोड़े जाने पर बंगाल में गरमाई राजनीति

बंगाल पुनर्जागरण की प्रमुख हस्ती थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल पुनर्जागरण काल के प्रमुख हस्ती और जाने माने सुधारवादी थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 10:23 AM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 10:55 AM (IST)
जानें कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिनकी मूर्ति तोड़े जाने पर बंगाल में गरमाई राजनीति
जानें कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिनकी मूर्ति तोड़े जाने पर बंगाल में गरमाई राजनीति

सिलीगुड़ी, जेएनएन। लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम चरण के होने वाले चुनाव के पहले बंगाल के बहाने पूरे देश में राजनीति गरमा गई है। इसका मुख्य कारण कोलकाता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा और उसके दौरान विद्यासागर महाविद्यालय स्थित समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा भी राजनीतिक हिंसा की भेंट चढ़ गई।

loksabha election banner

आज का युवा चुनावी हिंसा और सभी दलों के आरोप प्रत्यारोप की बात तो जान रहे है, परंतु ईश्वर चंद्र विद्यासागर के संबंध में विस्तार से नहीं जानते। वे सिर्फ इतना जानते है कि प्रतिमा बंगाल की माटी से जुड़ा हुआ है इसलिए वे उसके सम्मान में आंदोलन को आतुर है। इसलिए यह जरूरी है कि उनके संबंध में दैनिक जागरण अपने पाठकों को इसकी विस्तृत जानकारी दें।

बंगाल पुनर्जागरण की प्रमुख हस्ती थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल पुनर्जागरण काल के प्रमुख हस्ती और जाने माने सुधारवादी थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर। ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंदोपाध्याय था। उनका जन्म 26 सितंबर 1820 को कोलकाता में हुआ था। करमाटांग उनकी कर्मभूमि है। वह उच्चकोटि के विद्वान थे। उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गयी थी।

वे प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षा शास्त्री और स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे। वह नारी शिक्षा के समर्थक थे। उनके प्रयास से ही कलकत्ता में एक अन्य स्थानों में बहुत सारी बालिका विद्यालयों की स्थापना की गयी। उस समय हिंदू समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही सोचनीय थी।

उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लोकमत तैयार किया। उन्होंने 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून पारित कराया। उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया। उन्होंने बाल विवाह का विरोध किया। उन्हें गरीबी और दलितों का संरक्षक माना जाता था।

उन्होंने मेट्रोपोलिटन विद्यालय महिला महाविद्यालय स्थापित किया। 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बांग्ला भाषा की प्रथम गद्य रचना का प्रकाशन किया। 21 साल की उम्र में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ना शुरु कर दिया था। साल 1939 में विद्यासागर ने कानून की पढ़ाई पूरी की। पांच साल तक अपनी सेना देने के बाद समाज सुधार के लिए उन्होंने यह पद छोड़ दिया। 1949 में वह एक बार फिर वह साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुड़े। उन्हें एक दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री, लेखक, अनुवादक मुद्रक,प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक और मानवतावादी व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। 

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.