1942 में ही आजाद हो गया था बालुरघाट..
-बालुरघाट के दस हजार आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के नाक में कर दिया था दम -अंग्र
-बालुरघाट के दस हजार आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के नाक में कर दिया था दम
-अंग्रेजों ने दमन के लिए पूरे जिले में जुर्माना लगाया था
संवाद सूत्र, बालुरघाट : राष्ट्रपिता महात्महा गांधी ने आठ अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के लिए जो हुंकार भड़ी थी, उसकी गूंज भारत के पिछड़े से पिछड़े इलाके में भी ध्वनित होती है। अविभाजित बंगाल के मेदनीपुर व बालुरघार में अंग्रेजों के खिलाफ 10 हजार से अधिक लोग लामबंद हुए थे। आंदोलनकारियों ने हिंसक आंदोलन करते हुए तीन दिनों के लिए बालुरघाट शहर को मुक्त किया था। दैनिक जागरण को दिए गए साक्षात्कार में स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय पुलिन बिहारी दास गुप्ता ने बताया था कि बालुरघाट में 14 सितंबर को भारत छोड़ो आंदोलन हुआ था। कांग्रेस नेता स्वर्गीय सरोज रंजन चटर्जी के नेतृत्व में यह आंदोलन बालुरघाट, तपन, कुमारगंज, बांगलादेश का राजसाही जिला, दक्षिण क्षेत्र के डांगी गांव तक 10 हजार से अधिक लोग अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हुए थे। विशाल रैली निकालकर आंदोलन किया था। गांधी जी सशस्त्र क्रांति के पक्ष में नहीं थी। लेकिन उस समय कांग्रेस नेता डॉ. सुशील चटर्जी की इच्छा से यह आंदोलन हिंसक हो उठा था। इस सशस्त्र आंदोलन के कारण 1942 में ही ट्रेजरी भवन पर ब्रिटिश का झंडा हटाकर तिरंगा झंडा लगाया गया था। आंदोलनकारियों ने थाना पर आक्रमण किया। क्रांतिकारियों के डर से पुलिस भाग खड़े हुए। दस हजार क्रांतिकारियों के भय से अंग्रेजों की जीना मुश्किल हो गया था। लेकिन तीन दिनों के बाद अंग्रेजों ने बालुरघाट में फौज भेजकर आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया। अंग्रेजों ने नेता सरोज रंजन, पुलिन बिहारी दास गुप्ता, नित्य रंजन पाल, बिरेन दे सरकार, राधा मोहन महंत, कानू सेन, किरण दे, मंटू भट्टाचार्य, महिला सेनानी मांगेजी सहित असंख्य नेताओं को गिरफ्तार करके उन्हें जेल में यातना दी गयी। अंग्रेजों ने पूरे जिला पर जुर्माना लगाया था। इस आंदोलन को स्मरण करते हुए आज से 14 साल पहले कांग्रेस नेता व पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्ती डांगी घाट से विराट रैली के साथ बालुरघाट शहर आए हुए थे।
कैप्शन : बिट्रिश शासन के समय का महकमा शासक भवन