दूर्गापूजा के बाद लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने में व्यस्त मूर्तिकार
-13 अक्टूबर को होगा बंगाली समाज का कोजागरी लक्खी पूजा -रेडिमेड अल्पना व नारियल से पटा बाज
-13 अक्टूबर को होगा बंगाली समाज का कोजागरी लक्खी पूजा
-रेडिमेड अल्पना व नारियल से पटा बाजार
संवाद सूत्र, दिनहाटा : मां दुर्गा की विदाई के बाद बंगाली समाज लक्ष्मी पूजा(लक्खी पूजा) की तैयारी में जुट गए है। बंगाली समुदाय इसे कोजागरी लक्खी पूजा भी कहते है। 'कोजागरी' का अर्थ होता है कौन जाग रहा है? लोगों का मानना हे कि शरद ऋतु के दुधिया चांदनी में मां लक्ष्मी मध्य रात्रि को पृथ्वी का भ्रमण करने के लिए लाल रंग की साड़ी पहनकर अपनी सवारी उल्लू के साथ आती है। जो भक्त रात में जागकर मां की उपासना करते है, मां लक्ष्मी उनपर धन की वर्षा करती है। 13 अक्टूबर को पूर्णिमा के मध्य रात में 12 बजकर 36 मिनट से शुरू होगा जो 14 अक्टूबर दोपहर दो बजकर 37 मिनट तक रहेगा। पूजा का यह शुभ समय है। दिनहाटा में मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने में मूर्तिकार जी-जान से लग गए है। बंगाली समुदाय के हर घर में मां लक्ष्मी की पूजा होती है। घर के लिए श्रद्धालु छोटी साइज की प्रतिमा ही खरीदते है।
दिनहाटा के पटुआ पाड़ा में तथा शीलता बाड़ी के कुम्हारटोली में दशमी के बाद से प्रतिमा बनाने का कार्य जोर-शोर से चल रहा है। मूर्तिकार प्रदीप पाल ने बताया कि हम साल भर प्रतिमा निर्माण का कार्य करते है। दुर्गापूजा के लिए प्रतिमा पंचमी तक पंडालों में चली जाती है। इसके बाद हम कुछ दिन आराम करके दशमी के बाद से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने में जुट जाते है। मां लक्ष्मी की प्रतिमा हमें अधिक संख्या में बनाना पड़ता है। कारण हर घर में लक्ष्मी की पूजा होती है।
कैप्शन : प्रतिमा तैयार करते मूर्तिकार