हिंदू धर्म में महाकुंभ बेहद पवित्र पर्व माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति महाकुंभ में स्नान करता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं।
आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों चंद्र देव की गलती से महाकुंभ आस्था केंद्र बना? आइए इस गलती के बारे में जानें।
कुंभ से संबंधित एक प्रचलित दंतकथा भी मिलती है, जिसके अनुसार चंद्रमा द्वारा की गई एक गलती की वजह से कुंभ का आयोजन होता है।
दंतकथा के अनुसार, एक बार अमृत पाने की चाह में देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ।
इस दौरान कई तरह के रत्नों की उत्पत्ति हुई, जिन्हें सहमति के साथ देवताओं और असुरों ने आपस में बांट लिया।
जब आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर बाहर निकले, तो अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया।
असुरों से अमृत को बचाने के लिए इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भागने लगे। इस अमृत को संभालने की जिम्मेदारी चंद्रमा को दी गई थी।
चंद्रमा अपनी जिम्मेदारी संभालने में नाकाम रहे। इसके चलते अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं।
आज इन्हीं चार स्थानों पर 12 साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है और चंद्रमा जी की गलती के कारण ऐसा हुआ।