घड़ी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है। आज हम अपने सभी काम घड़ी में दिख रहे समय के हिसाब से ही करते हैं। मार्केट्स में तो अब दीवार पर टंगी घड़ी, हाथ घड़ी और स्मार्ट वॉच भी आ चुके हैं।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि घड़ी के बिना पुराने समय में लोग टाइम का पता कैसे लगाते थे? नहीं जानते हैं, तो आइए आज हम आपको कुछ पुराने तरीकों के बारे में बताते हैं।
रेत घड़ी को सैंड क्लॉक भी कहा जाता है। इसमें दो बल्बों के बीच एक छोटे-सा छेद होता था और उसकी ऊपरी बल्ब में रेत भरकर उल्टा कर दिया जाता था। रेत गिरने में लगने वाले समय से टाइम का पता लगाया जाता था।
पहले समय के लोग सूरज की रोशनी से समय का पता लगाया करते थे, जिसे सन क्लॉक भी कहा जाता था। जमीन में एक सीधी छड़ को जमीन में गाड़ कर सूर्योदय और सूर्यास्त की छाया के हिसाब से टाइम का अनुमान लगाया जाता था।
पेड़ों की छाया व पशुओं की नींद और जागने के समय से भी टाइम का अंदाजा लगाया जाता था। इसके अलावा, पक्षियों के गाने की आवाज से भी पता लगाया जाता था।
पानी के एक बर्तन में छेद करके धीरे-धीरे पानी निकाला जाता था। ऐसा करके बर्तन पर बने निशान से पता लगाया जाता था।
तारों की स्थिति और चंद्रमा की कलाओं को देखकर रात का समय का अंदाजा लगाया जाता था।
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