भीष्म पितामह और अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक हैं। महाभारत की युद्ध के दौरान अर्जुन ने अपने बाणों के प्रहार से भीष्म पितामह को छलनी कर दिया था।
लेकिन भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिस कारण कष्ट में होने के बाद भी अपने प्राण नहीं त्यागे।
वह बाणों की श्रेया पर कई दिनों तक लेटे रहे। इस घटना के बाद भी अर्जुन हमेशा भीष्म पितामह के प्रिय बने रहे।
ऐसे में आज हम आपको भीष्म पितामह की कुछ सीख के बारे में बताएंगे, जो उन्होंने बाणों की श्रेया पर लेटे हुए अर्जुन को दी थी और यह किसी के भी काम आ सकती है।
भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए अपने अंतिम समय में अर्जुन से कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी लालसा में आकर अपनी मर्यादा का त्याग नहीं करना चाहिए।
भीष्म पितामह ने अपने प्रिय अर्जुन से कहा कि सत्ता का उपयोग कभी भी उपभोग के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि कठिन परीक्षण करके समाज का कल्याण करना चाहिए।
भीष्म पितामह, अर्जुन से कहते हैं कि तुम जीत जाओ तब भी न घमंड में आना और न ही सूख की लालसा रखना। अपने कर्तव्य और धर्म को हमेशा सर्वोपरि रखना।
अर्जुन को सीख देते हुए भीष्म पितामह कहते हैं कि ऐसा बात कभी मत करना जिससे दूसरों को कष्ट हो। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ में रहना ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं।
आप भी यह सीख अपने जीवन में अपना सकते हैं। अध्यात्म से जुड़ी तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ते रहें jagran.com