शिक्षिका ने बताई व्यथा, भूखे रहकर काटीं संकट के दो दिन-दो रातें
शिक्षिका संगीता ने उत्तरकाशी आपदा की विभीषिका को अपनी आंखों से देखा। मंगलवार को आराकोट पहुंचीं संगीता कहती हैं कि दो दिन-दो रातें उन्होंने भूखे रहकर काटीं।
उत्तरकाशी, राधेकृष्ण उनियाल। पौड़ी जिले की श्रीनगर निवासी संगीता देवी प्राथमिक विद्यालय चिवां में शिक्षक हैं। संगीता ने भी इस आपदा की विभीषिका को अपनी आंखों से देखा। मंगलवार को आराकोट पहुंचीं संगीता कहती हैं कि दो दिन-दो रातें उन्होंने भूखे रहकर काटीं। वह जिस कमरे में रहती थीं, वह कमरा सैलाब में बह गया।
मंगलवार को मौसम कुछ साफ हुआ तो बंद रास्तों से होकर आराकोट पहुंचने की हिम्मत जुटाई। तब जाकर जैसे-तैसे यहां पहुंच पाई हूं। आराकोट पहुंचने पर संगीता ने बताया कि उनके पति सेना में हैं। उनकी सास और तीन बच्चे चिवां में उनके साथ ही थे। रविवार तड़के जब चिवां में सैलाब आया तो वे सभी किसी तरह एक सहकारी समिति की दुकान में पहुंचे। तब तक उनका विद्यालय और कमरा उफान में समा चुका था। संकट के दो दिन और दो रातें उन्होंने सहकारी समिति की उसी दुकान में काटीं। उस दुकान में सौ से अधिक लोगों ने शरण ली हुई थी। दोनों दिन लोग वहां भूखे रहे।
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मंगलवार सुबह मौसम साफ दिखा और नदी-नालों का उफान कुछ कम हुआ तो साहस करके वह चार किमी दूर टिकोची पहुंचे। वहां से राहत सामग्री छोड़ने के लिए गए हेलीकॉप्टर के जरिये आराकोट पहुंच सके। संगीता कहती हैं, उनका अपने पति समेत अन्य रिश्तेदारों से भी संपर्क नहीं हो पाया। आपदा की खबर सुनकर उनके पति दुर्गेश कुमार भोपाल (मध्य प्रदेश) से मंगलवार को आराकोट पहुंचे। तब जाकर उन्होंने हमारी सकुशलता की जानकारी ली।
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