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कृषि मंडी को धरातल पर उतरने का इंतजार

राज्य बनने के बाद भाजपा व कांग्रेस सरकारों ने पर्वतीय क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित करने के बड़े-बड़े दावे जरूर किए हैं। लेकिन किसान के हाथ आज भी खाली हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Jan 2022 11:07 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 11:07 PM (IST)
कृषि मंडी को धरातल पर उतरने का इंतजार
कृषि मंडी को धरातल पर उतरने का इंतजार

तिलकचंद रमोला नौगांव : राज्य बनने के बाद भाजपा व कांग्रेस सरकारों ने पर्वतीय क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित करने के बड़े-बड़े दावे जरूर किए हैं। लेकिन, किसान के हाथ आज भी खाली हैं। ऐसी स्थिति में पहाड़ के किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। सबसे अधिक उपेक्षित फल एवं सब्जी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रवाईं घाटी के काश्तकार हैं। वर्ष 2003 में पहली बार यहां कृषि मंडी बनाने की घोषणा हुई थी। लेकिन, आज तक यह घोषणा धरातल पर नहीं उतरी है।

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उत्तरकाशी जिले की रवांईघाटी सब्जी एवं फलों के उत्पादन के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। यहां फल एवं सब्जी उत्पादन से नौगांव व पुरोला ब्लाक के 20 हजार किसान जुड़े हुए हैं। किसानों के सामने हर साल की तरह कृषि मंडी की समस्या खड़ी हो जाती है। इस घाटी में फल, सब्जी एवं परंपरागत फसलों का अच्छा उत्पादन होता है। लेकिन, प्रत्येक सीजन के दौरान काश्तकारों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाते हैं, जिससे पूरे सालभर की मेहनत पर पानी फिर जाता है। जबकि रवाईं घाटी क्षेत्र से पलायन को यहां की खेती ने ही रोका हुआ है। ऐसे में खेती करने वाले किसानों को सुविधाएं मिलनी जरूरी है। कृषि मंडी बनने से क्षेत्र के छोटे-छोटे किसानों को अपनी फसलों को बेचने का अवसर मिल सकता है। लेकिन, विडंबना है कि यहां आज भी कृषि मंडी नहीं बन सकी है। प्रगतिशील काश्तकार युद्धवीर सिंह रावत ने कहा कि वर्ष 2003, 2008 और 2018 में नौगांव में कृषि मंडी बनाने की घोषणा की थी। लेकिन, गत एक नवंबर 2021 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नौगांव धारी में आयोजित कार्यक्रम में 9.34 करोड़ की लागत से नौगांव में आधुनिक मंडी के निर्माण का शिलान्यास किया। कृषि मंडी सचिव विजय थपलियाल ने बताया कि नौगांव कृषि मंडी के लिए धनराशि पूर्व में स्वीकृत हो चुकी है। लेकिन, आचार संहिता के कारण अभी निर्माण की निविदा नहीं हो पाई है। चुनाव के बाद मंडी का निर्माण शुरू हो जाएगा।

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कृषि मंडी खुलने से यह होगा लाभ

रवाईं घाटी के काश्तकारों को अपनी फसलों को मंडियों तक पहुंचाने के लिए फसलों के दाम से अधिक ढुलान भाड़ा देना पड़ता है। कृषि मंडी होने से क्षेत्र के काश्तकार अपनी फसलों को आसानी से मंडी में बेच सकते हैं। वहीं, बिचौलियों से भी बच सकते हैं। साथ ही बरसात में सड़कें बंद होने से काश्तकारों की फसलें खेतों व सड़कों पर ही बरबाद हो जाती हैं, लेकिन, मंडी होने से कश्तकारों को जहां फसलों के अच्छे दाम मिलेंगे वहीं फसल बरबाद होने से भी बच जाएगी।

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रवाईं घाटी में प्रति वर्ष उत्पादन की अनुमानित स्थिति -

सेब - 9 हजार मीट्रिक टन

टमाटर - 17 हजार मीट्रिक टन

आलू -15 हजार मीट्रिक टन

लाल धान - 40 हजार मीट्रिक टन

मटर - 15 हजार मीट्रिक टन

राजमा - 20 हजार मीट्रिक टन

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