Uttarkashi Cloudburst: 35 साल पहले नहीं थी इतनी बसावट, धराली में बड़ी गलती का नतीजा है भीषण तबाही
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने धराली आपदा पर बात करते हुए कहा कि 35 साल पहले यहां कम बसावट थी। लोगों ने नदी के किनारे निर्माण कर नदी का रास्ता संकरा कर दिया। खीरगंगा नदी में बाढ़ के तीन कारण हैं ग्लेशियर अवसाद भूस्खलन और मानवजनित गतिविधियाँ। उन्होंने बाढ़ के कारणों का हवाई सर्वेक्षण करने की आवश्यकता बताई।

अजय कुमार, उत्तरकाशी। मैं 1990-91 में अपने पहले गंगोत्री ग्लेशियर के साइंटिफिक दौरे पर जाते हुए धराली में रुका था, तब वहां इतनी बसागत नहीं थी। धराली में लोगों ने खीर गंगा नदी की बाढ़ के साथ आए मलबे के ऊपर होटल व मकान खड़े किए। 35 साल में यहां इतनी बसागत हो गई कि नदी का रास्ता संकरा हो गया। यह आपदा मानव की एक बड़ी गलती का नतीजा है।
यह कहना है कि वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के सेवानिवृत्त ग्लेशियन विज्ञानी डाॅ. डीपी डोभाल का।
उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री ग्लेशियर पर लंबे समय तक अध्ययन करने वाले ग्लेशियर विज्ञानी डाॅ. डोभाल ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि वर्ष 1990-91 में वह अपने साथी तीन-चार विज्ञानियों के साथ गंगोत्री ग्लेशियर जाते हुए धराली में चाय पीने रुके थे। तब वहां इतनी बसागत नहीं थी।
बहुत कम आशियाने गांव में ऊपर की ओर ही थे। नदी के आसपास एक मकान बन रहा था, मकान बनाने वाले व्यक्ति को उन्होंने चेताया था कि वह इतना अच्छा मकान ऐसी खतरनाक जगह पर क्यों बना रहा है।
यह मकान 20 या 50 साल बाद खत्म हो जाएगा, लेकिन धीरे-धीरे इतना निर्माण हुआ कि मानव ने नदी का रास्ता ही अवरुद्ध कर दिया। जबकि, यहां पूर्व में कई बार बाढ़ आती रही।
बाढ़ की घटनाओं को हल्के में लेने का ही परिणाम है कि आज यहां बड़ी आपदा के चलते भारी नुकसान हुआ है और मानव इस आपदा के आगे पूरी तरह असहाय नजर आ रहा है।
खीरगंगा नदी के ऊपर हैं दो ग्लेशियर
ग्लेशियर विज्ञानी डाॅ. डोभाल ने खीरगंगा नदी में आई विनाशकारी बाढ़ के पीछे तीन कारण बताए हैं। उनका कहना है कि खीरगंगा के ऊपर दो छोटे-छोटे ग्लेशियर हैं। उनके नीचे बहुत बड़ी मात्रा में ग्लेशियर अवसाद जमा होने की आशंका हैं। इसके ऊपर ज्यादा वर्षा के चलते अवसाद के बहकर आने से बाढ़ का अनुमान है।
दूसरा कारण यह है कि संकरी घाटी में कहीं भूस्खलन के चलते वहां नदी का पानी जमा होता रहा होगा, बाद में इस पानी के बहुत तेजी से नीचे आने के कारण आपदा की आशंका है। जबकि तीसरा कारण मानव जनित है। सभी जानते हैं कि यह नदी का रास्ता है, बावजूद वह वहां बसे हुए हैं।
पहाड़ में अब नहीं होती बुग्याली वर्षा ग्लेशियर विज्ञानी डाॅ. डोभाल ने बताया कि पहाड़ पर वर्षा का ट्रेंड तेजी से बदला है। हिमालय में 6,000 फीट से ऊपर का पूरा क्षेत्र कमजोर अवसाद से भरा हुआ है। पहले इन क्षेत्रों में मोटी वर्षा नहीं होती थी, बल्कि नौ से 10 हजार फीट पर रुनझुन-रुनझुन बुग्याली वाली वर्षा होती थी।
इसका पानी नदियों में आ जाता था, लेकिन अब 20 मिनट में ही तेज वर्षा होती है और फिर बंद हो जाती है। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। अब तो स्नो लाइन तक भी वर्षा देखने को मिल रही है।
बाढ़ के कारणों का सर्वे बेहद जरूरी डाॅ. डोभाल ने खीरगंगा नदी में आई बाढ़ के कारणों का सर्वे जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि यह बाढ़ ग्लेशियर टूटने से आई है या फिर नदी का बहाव रुकने से यह सब हुआ, यह देखने के लिए हवाई सर्वे किया जाना चाहिए। तभी असल तस्वीर सामने आ पाएगी।

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