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सिस्टम की अव्यवस्थित ट्रैकिग से हर जान दांव पर

हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिग जितनी रोमांचकारी है उतनी ही जोखिमभरी भी है। पिछले पांच वर्ष के अंतराल में केवल उत्तरकाशी जिले में ही ट्रैकिग के दौरान फंसने और भटकने से 12 पर्यटक और छह पोर्टर की मौत हो चुकी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 02:58 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 02:58 AM (IST)
सिस्टम की अव्यवस्थित ट्रैकिग से हर जान दांव पर
सिस्टम की अव्यवस्थित ट्रैकिग से हर जान दांव पर

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

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हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिग जितनी रोमांचकारी है, उतनी ही जोखिमभरी भी है। पिछले पांच वर्ष के अंतराल में केवल उत्तरकाशी जिले में ही ट्रैकिग के दौरान फंसने और भटकने से 12 पर्यटक और छह पोर्टर की मौत हो चुकी। बावजूद इसके उत्तराखंड में ट्रैकिग को लेकर कोई नियम नहीं बनाए गए हैं और न ही जान-माल की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था है। यहां अव्यवस्थाओं के बीच ट्रैकिग करना पर्यटकों, पोर्टर और गाइड के लिए जान दांव पर लगाने जैसा है।

उत्तराखंड में अधिकांश साहसिक पर्यटक स्थल और ट्रैक वन क्षेत्र में होने के बावजूद वन विभाग की जिम्मेदारी शून्य है। यहां तक कि वन विभाग पर्वतारोहण की अनुमति तो देता है, लेकिन ट्रैकिग दलों के जाने-आने की सूचना प्रशासन और पुलिस तक नहीं पहुंचती। मौसम विभाग के रेड अलर्ट को देखते हुए प्रशासन ने वन विभाग से पर्यटक दलों के बारे में सूचना मांगी थी। लेकिन, हर्षिल से छितकुल गए दल की सूचना वन विभाग की ओर से समय पर नहीं दी गई। जब दल फंसा और हलचल मची तब वन विभाग की नींद खुली कि एक पर्यटक दल को उन्होंने 12 अक्टूबर को अनुमति दी है। इस तरह की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं। बीते सितंबर माह में त्रिशूल चोटी पर आरोहण के लिए नौसेना का दल गया था। इस दल की जानकारी चमोली डीएफओ और वहां के प्रशासन को नहीं थी।

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नहीं बनी है कोई एसओपी

राज्य में साहसिक पर्यटन और ट्रैकिग के लिए कोई एसओपी नहीं बनी है। वन विभाग अनुमति देने के दौरान मौसम के पूर्व अनुमान की रिपोर्ट भी आपदा प्रबंधन विभाग से नहीं लेता है। प्रशिक्षित गाइड और पोर्टर के लिए भी कोई मानक तय नहीं किए गए हैं। पैसे के लालच में ट्रैकिग एजेंसियां भी पर्यटकों सहित गाइड और पोर्टर की जान से खिलवाड़ कर रही हैं। ऐसे में मुसीबत के क्षण में सभी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। इससे न तो प्रशासन सबक ले रहा है और न ट्रैकिग एजेंसियां जिम्मेदार बन रही हैं।

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सेटेलाइट को मिले अनिवार्यता

ट्रैकिग पर गए पर्यटकों के भटकने की कई घटनाएं उत्तरकाशी जिले में हो चुकी हैं। 24 मई से लेकर एक जून 2017 तक दिल्ली के तीन पर्यटक डोडीताल के जंगल में फंसे रहे। इन पर्यटकों ने जिदा रहने के लिए अपना टेंट भी जला दिया था। वहीं छह अप्रैल से लेकर 11 अप्रैल 2018 तक चांईशिल बुग्याल में पांच सदस्यीय पर्यटक दल तीन दिन तक फंसा रहा, जिसमें एक पर्यटक की मौत हो गई। जो पर्यटक फंसते हैं या ट्रैकिग के दौरान कोई घटना घटित होती है तो वे सेटेलाइट फोन के अभाव में सूचना नहीं दे पाते। पर्यटन से जुड़े कई व्यक्ति ट्रैकिग के लिए सेटेलाइट फोन की अनिवार्यता की मांग कर रहे हैं।

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अनुमति देने से पहले पर्यटकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी तय की जानी जरूरी है। ट्रैकिग की अनुमति देने से पहले पर्यटकों से संबंधित सूचनाएं प्रशासन व आपदा कंट्रोल रूम को दी जानी चाहिए। जिससे आपदा कंट्रोल रूम को भी इसकी जानकारी हो कि कहां कितने पर्यटक गए और पर्यटकों को मौसम से संबंधित जानकारी भी मिल सके।

मयूर दीक्षित, जिलाधिकारी उत्तरकाशी --------------

हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिग के दौरान भटकने और फंसने से हुए मौत

- 02 जून 2016: तपोवन ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 07 अक्टूबर 2017: डोडीताल ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 13 सितंबर 2017: हर्षिल-हरकीदून ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 02 अक्टूबर 2018: हरकीदून ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 12 सितंबर 2018: गंगोत्री-भोजवासा ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 15 जून 2018: सांकरी-यमुनोत्री ट्रैक पर एक पोर्टर की मौत।

- 14 जून 2018: हरकीदून-छितकुल ट्रैक पर एक पर्यटक की मौत।

- 08 मई 2018: केदारताल ट्रैक पर एक पोर्टर की मौत।

- 11 अप्रैल 2018: चाईशिल बुग्याल में एक पर्यटक की मौत।

- 26 मई 2019: किनौर में मोरी के एक पोर्टर की मौत।

- 18 अक्टूबर 2021: नीलापानी क्षेत्र में आइटीबीपी गश्ती दल में शामिल तीन पोर्टरों की मौत।

- 19 अक्टूबर 2021: हर्षिल छितकुल ट्रैक पर पांच पर्यटकों की मौत।


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