जैविक खेती में तलाशी स्वरोजगार की राह
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से दस किलोमीटर दूर मातली गांव में एक दंपत्ति ने स्वरोजगार की सेवा शुरू की है।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से दस किलोमीटर दूर मातली गांव में एक दंपती ने वोकल फॉर लोकल के तहत स्वरोजगार की मिसाल कायम की है। अपने किचन गार्डन में जैविक तरीके से सब्जी उत्पादन किया है। लॉकडाउन से अभी तक दंपती ने डेढ़ लाख रुपये की सब्जी बेची है। इस दंपती के पास लगातार जैविक उत्पादों की डिमांड भी आ रही है। अब दंपती ने जैविक खेती करने और जैविक फसल से जैविक उत्पाद तैयार करने का लक्ष्य बनाया है, जिससे आमजनों को रोजगार भी प्राप्त हो सके।
ये कहानी है मातली निवासी 52 वर्षीय देवेंद्र बधानी और उनकी पत्नी प्रेमा बधानी की। वनस्पति विज्ञान से पोस्ट ग्रेजुएट देवेंद्र बधानी मातली में फोटोग्राफी की दुकान संचालित करते हैं। जबकि उनकी समाजशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट प्रेमा बधानी एक वर्ष पहले तक एक सामाजिक संस्था में कार्य करती थी। जहां उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत जैविक खेती का प्रशिक्षण लिया। लॉकडाउन हुआ तो पति-पत्नी अपने घर के पास 11 नाली भूमि पर खेती करने में जुटे। दोनों ने जैविक तरीके से खेती करनी शुरू की। करीब 60 हजार रुपये की मटर और बिन्स बेची। इसके अलावा दंपती ने भुजेला, ककड़ी व दाल की बड़ी (न्यूट्रीन) भी तैयार की। तीस किलो से अधिक न्यूट्रीन बेच दी है, जबकि डेढ़ क्विंटल न्यूट्रीन की मांग उनके पास आई है, जिसको तैयार करने वे इन दिनों जुटे हुए हैं।
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गाय के गोबर से तैयार की खाद
उत्तरकाशी : जैविक खेती के लिए प्रेरित करने वाले इस दंपती ने दूध के लिए गाय भी पाली है, जिसके गोबर से जैविक खाद तैयार की जा रही है। देवेंद्र बधानी कहते हैं कि रसायनिक खादों का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। जैविक खाद के प्रयोग से फसल का उत्पादन अच्छा भी हो रहा है और गुणवत्तापूर्ण भी।
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सोशल मीडिया को बनाया प्रचार का माध्यम
उत्तरकाशी : देवेंद्र बधानी कहते हैं कि वे 1995 से फोटोग्राफी कर रहे हैं। इसलिए फोटोग्राफी की तकनीकी को जानते हैं। जो उत्पाद उन्होंने तैयार किए हैं उसकी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड की, जिससे उन्हें काफी अच्छा सहयोग मिला है।
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इच्छाशक्ति से दूर हुई पानी की कमी
उत्तरकाशी : प्रेमा बधानी कहती हैं कि मातली गांव में जब उन्होंने नगदी फसलों का उत्पादन शुरू किया तो कई ग्रामीणों ने कहा कि बिना पानी के कैसे हो सकता है। हां ये बात तो सही है कि मातली में सिचाई के पानी की भारी कमी है। लेकिन वे पौधों को पानी देने के लिए सुबह तीन बजे उठ जाते थे। सुबह के दौरान नल पर पर्याप्त पानी आता है, उसका कोई उपयोग भी नहीं करते हैं। इसलिए उस पानी को बर्तनों में जमा किया। साथ ही पाइप लगाकर एक-एक पौधों को भी पानी दिया है।