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नियति ने छीनी आंखें... अब उम्‍मीद छिनने का डर, उत्तरकाशी दिव्यांग आवासीय विद्यालय को 2020 से नहीं मिला अनुदान

Rashtriya Divyang Diwas 2022 दिव्यांगता किसी सफलता में बाधा नहीं है। जरूरत है तो बस सही दिशा और संसाधन की। इसके विपरीत उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लाक के तुनाल्का में स्थित विजया पब्लिक दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय आर्थिक संकट से गुजर रहा है।

By Shailendra prasadEdited By: Nirmala BohraPublished: Sat, 03 Dec 2022 11:49 AM (IST)Updated: Sat, 03 Dec 2022 11:49 AM (IST)
नियति ने छीनी आंखें... अब उम्‍मीद छिनने का डर, उत्तरकाशी दिव्यांग आवासीय विद्यालय को 2020 से नहीं मिला अनुदान
Rashtriya Divyang Diwas 2022 : दिव्यांग छात्र अनुदान की मांग को लेकर बड़कोट तहसील परिसर में धरने पर बैठे हैं।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Rashtriya Divyang Diwas 2022 : दिव्यांगता किसी सफलता में बाधा नहीं है। जरूरत है तो बस सही दिशा और संसाधन की। यह साबित किया है गढ़वाल विश्वविद्यालय की छात्रा नेत्र दिव्यांग वंशिका मलिक ने। उन्होंने संगीत विषय में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

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इसके विपरीत उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लाक के तुनाल्का में स्थित विजया पब्लिक दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विद्यालय के 50 नेत्र दिव्यांग छात्र स्कूल को अनुदान की मांग को लेकर बड़कोट तहसील परिसर में आठ दिन से धरने पर बैठे हैं। अभी तक सरकारी सिस्टम की दृष्टि इन पर नहीं गई है।

टिहरी जनपद के प्रतापनगर की बचपन से दृष्टि दिव्यांग साधना कहती हैं कि वह कक्षा पांचवीं की छात्रा है। वह ब्रेल लिपि और टेलीफेम से पढ़ाई कर रही है। कंप्यूटर ज्ञान के साथ फुटबाल भी खेलती हैं।

उनका सपना शिक्षक बनने का है। उनकी पढ़ाई का अनुदान वर्ष 2020 में बंद कर दिया है। वह कहती है कि माता-पिता की आर्थिक स्थिति सही नहीं है। अब पढ़ाई छूटने का डर सता रहा है।

हमारे सपनों को मत छीनो

स्कूल के लिए अनुदान की मांग के आंदोलन में शामिल उपरीकोट उत्तरकाशी की 17 वर्षीय कक्षा आठ की छात्रा लविशा कहती है कि बचपन में हादसे ने उनकी आंखे चली गईं।

वर्ष 2017 में उन्होंने विजया पब्लिक दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय में प्रवेश लिया, लगा जीवन में आशा की किरण जगी है। दो वर्ष से मेरा व अन्य दृष्टि दिव्यांग बच्चों का अनुदान बंद कर दिया है। अधिकारियों से मेरी यही प्रार्थना है कि नियति ने आंखे छीनी हैं, पर आप मेरी उम्मीदों को मत छीनो।

कैसे पूरा होगा सपना

कक्षा छह में पढ़ने वाले दृष्टि दिव्यांग नौगांव निवासी अभिषेक कहते हैं कि उनके विद्यालय से पढ़े दृष्टि दिव्यांग बच्चे बैंक और रेलवे सहित कई क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं। तीन छात्रों ने खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग किया है। दो छात्र बीएड कर रहे हैं। मेरा भी लक्ष्य शिक्षक बनने का है। पर अब ये कैसे पूरा हो पाएगा।

प्रतिमाह प्रति छात्र मिलता 3500 रुपये का अनुदान

केंद्र सरकार की ओर से विजया पब्लिक दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय के प्रत्येक छात्र को प्रतिमाह 3500 रुपये अनुदान मिलता था। इसमें उनके रहने, खाने और पढ़ाई का खर्च शमिल रहता था। अब यह अनुदान मिलना बंद हो गया है।

क्यों बंद हुआ अनुदान

विद्यालय की प्रबंधक विजया जोशी कहती हैं कि राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के प्रोजेक्ट के तहत भारत सरकार से दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय को सहयोग मिलता था। कोविड के दौरान बजट में कमी का हवाला देते हुए संस्थान ने बजट देने से मना कर दिया।

कोविड के बाद राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण भारत सरकार के पोर्टल पर आवेदन करने के लिए कहा गया। परंतु इस पोर्टल में छात्रों की संख्या से लेकर अन्य मानक पहाड़ों के अनुरूप नहीं हैं। जबकि राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून चाहे तो उन्हें पहले की तरह अनुदान मिल सकता है।

50 नेत्र दिव्यांग बच्चे है अध्यनरत

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नौगांव ब्लाक के तुनाल्का में वर्ष 2007 से विजया जोशी दृष्टि दिव्यांग आवासीय विद्यालय संचालित करती आ रही है। जिससे सरकार से सहयोग मिलता था। 2020 में सरकार से सहयोग मिलना बंद हुआ।

विजया जोशी किसी तरह से उधार लेकर दृष्टि दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई और रहने खाने की व्यवस्था कर रही है। यह विद्यालय आठवीं तक है और उत्तराखं बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। स्कूल में छह शिक्षक हैं। वर्तमान में इस विद्यालय में 50 दृष्टि दिव्यांग बच्चे अध्ययनरत हैं। जिनमें 26 छात्र और 24 छात्राएं शामिल हैं।

वर्ष 2007 से 2020 तक इस विद्यालय को राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के प्रोजेक्ट पर भारत सरकार का सहयोग मिला है। नई गाइड लाइन के तहत कागजी मानकों को पूरा करने में कुछ तकनीकी दिक्कत है। विद्यालय प्रबंधन और भारत सरकार के बीच वार्ता चल रही है। जिसका समाधान निकलने की उम्मीद है।

-हिमांशु दास, निदेशक राष्ट्रीय दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून


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