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भारत-चीन सीमा पर देव डोलियों के साथ लगा रांसो-तांदी, आइटीबीपी जवान भी शामिल

जादूंग और नेलांग गांव में भोटिया और जाड़ समुदाय के लोग अपनी देवी-देवताओं की डोली लेकर पहुंचे। जहां रांसो-तांदी नृत्य प्रस्तुत कर आराध्य देव को प्रसन्न किया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 02:57 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 02:57 PM (IST)
भारत-चीन सीमा पर देव डोलियों के साथ लगा रांसो-तांदी, आइटीबीपी जवान भी शामिल
भारत-चीन सीमा पर देव डोलियों के साथ लगा रांसो-तांदी, आइटीबीपी जवान भी शामिल

उत्तरकाशी, जेएनएन। भारत-चीन सीमा पर स्थित जादूंग और नेलांग गांव में भोटिया और जाड़ समुदाय के लोग अपनी देवी-देवताओं की डोली लेकर पहुंचे। जहां महिलाओं और पुरुषों ने पांडव चौक के साथ ही रिंगाली देवी चौक में रांसो-तांदी नृत्य प्रस्तुत कर आराध्य देव को प्रसन्न किया। इस अवसर पर ग्रामीणों ने लाल देवता, चैन देवता और रिंगाली देवी की विधि विधान से पूजा अर्चना की। सीमा पर तैनात आइटीबीपी के जवान भी इस पूजा अर्चना में शामिल हुए।  

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भारत चीन युद्ध के दौरान 1962 में जादूंग, नेलांग और कारछा गांव से रह रहे भोटिया और जाड़ समुदाय के ग्रामीणों को हटाया गया था। तब ये ग्रामीण बगोरी, डुंडा और हर्षिल आ गए थे। लेकिन इनके स्थानीय देवता आज भी वहीं हैं। प्रति वर्ष ये ग्रामीण अपने देवताओं की पूजा के लिए जाते हैं। रविवार सुबह सोमेश्वर, रिंगाली देवी की डोली लेकर जादूंग पहुंचे। जहां इन ग्रामीणों ने पहले नेलांग में रिंगाली देवी की पूजा, अर्चना की। करीब एक घंटे तक रिंगाली देवी चौक में रांसो तांदी नृत्य का आयोजन हुआ। 

जिसके बाद जादूंग में लाल देवता और चैन देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई। पूजा अर्चना के बाद महिला व पुरुषों ने देवता की डोली के साथ रांसो-तांदी नृत्य किया। इस अवसर पर स्थानीय महिलाओं ने पारंपरिक वेश-भूषा में पौराणिक गीत भी गाए। पूजा-अर्चना समापन होने के बाद ग्रामीणों ने हलवा व पूरी का प्रसाद वितरित किया। शाम होते ही ग्रामीण नेलांग घाटी से वापस बगोरी गांव लौटे।

ग्रामीणों के साथ कई पर्यटक भी जादूंग पहुंचे थे। बगोरी ग्राम प्रधान भवान सिंह राणा ने बताया कि नेलांग और जादुंग में ग्रामीणों की पैतृक भूमि है। लेकिन आज तक ग्रामीणों को अपनी भूमि का प्रतिकर नहीं मिला। न ही गांव का विस्थापन हुआ। कहा विस्थापन के लिए ग्रामीण आज भी केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। ग्रामीणों को प्रतिवर्ष अपने गांव में अपने आराध्यदेव की पूजा अर्चना करने के लिए जिला प्रशासन की अनुमति लेकर आना पड़ता है। यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

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