हरि महाराज मंदिर में नहीं जा सकती महिलाएं
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : आधुनिक दौर में जब तमाम सामाजिक रुढि़यों की बेड़ियां टूट रही
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : आधुनिक दौर में जब तमाम सामाजिक रुढि़यों की बेड़ियां टूट रही हैं, वहीं सीमांत जिले में आज भी एक मंदिर ऐसा है, जहां महिलाओं का जाना वर्जित है। हैरत की बात है कि यह मंदिर गांव का पौराणिक आराध्य मंदिर हैं। इस मंदिर में महिलाएं केवल दूर से ही अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना कर परिवार की खुशहाली और सुख समृद्धि की कामना करती हैं।
जिला मुख्यालय से सटे भटवाड़ी ब्लॉक का बाड़ागड्डी पट्टी क्षेत्र के करीब 14 गांवों के आराध्य देव हरि महाराज हैं। इनका पौराणिक मंदिर कुरोली गांव से करीब दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के बाद एरावत पर्वत श्रृंखला और हरि गिरी पर्वत के बीच कुंज्जनपुर नामक स्थान पर स्थित है। यहां ग्रामीण श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय महाराज को हरिमहाराज के रूप में पूजते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान गणेश और कार्तिकेय को पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए कहा गया तो गणेश जी ने माता-पिता को पृथ्वी एवं आकाश मानकर उनकी परिक्रमा की थी, लेकिन कार्तिकेय महाराज अपने वाहन हंस पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल दिए थे। लेकिन जब वह लौटे तो गणेश को विजेता घोषित किया गया। इसी बात से नाराज होकर कार्तिकेय महाराज अपने माता-पिता शिव पार्वती से रूठ कर चले गए और उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई। यही कारण है कि उनके मंदिर में महिलाओं को जाना वर्जित माना गया है।
कुरोली गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग शूरवीर ¨सह गुसाईं ने बताया कि हरिमहाराज का मंदिर उनके दादा परदादा के जन्म से पहले का बना हुआ है, उन्हें भी इसके बारे में यही जानकारी है। 72 वर्षीय बुजुर्ग नारायण ¨सह ने बताया कि हरिमहाराज का पौराणिक मंदिर शायद तबका बना होगा जब इस क्षेत्र में लोग बसना शुरू हुए होंगे। कहा हमने दो पीढि़यां देखी हैं, लेकिन उनका भी यही कहना होता था कि मंदिर बहुत पुराना है एवं उनके पूर्वजों से भी पहले का बना है। हरिमहाराज के पुजारी शंभूप्रसाद ने बताया कि हरिमहाराज देवता के पास आने वाले भक्तों के दुखों का निवारण अवश्य होता है।
सीटी से प्रसन्न होते हैं हरि महाराज
मान्यता है कि बिना सीटी बजाने पर हरि महाराज प्रसन्न नहीं होते। ग्रामीण जब भी हरि महाराज से अपनी समस्या लेकर जाते है तो वह बिना सीटी बजाया इनका आवाह्न नहीं करते। कहा जाता है कि हरि महाराज के दोस्त हुणेश्वर महाराज थे, जिनका मंदिर कुरोली के हुणेश्वर तोक पर स्थित है। हरिगिरी पर्वत से हरि महाराज और जब हुणेश्वर से वार्ता करते थे, तो वह आपस में सीटी के माध्यम से ही एक दूसरे से वार्तालाप करते थे। तब से लेकर यह परंपरा आज भी जीवित है।
इन गांवों के हैं आराध्य देव
बाड़ागड्डी पट्टी के मुस्टिकसौड़, कुरोली, मस्ताड़ी, कंकराड़ी, थलन, मानपुर, साड़ा, किशनपुर, डांग, पोखरी, बोंगा, भेलुड़ा आदि गांवों के आराध्य देव हैं। वर्ष के सात गते भद्रमास में यहां दुधगाड़ू मेले से हरि महाराज को प्रसन्न किया जाता है।