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रोमांच के पथ पर जान का जोखिम

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी हिमालयी क्षेत्रों में ट्रैकिंग का जितना रोमांच है, उतना ही जा

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 03:00 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 03:00 AM (IST)
रोमांच के पथ पर जान का जोखिम
रोमांच के पथ पर जान का जोखिम

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

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हिमालयी क्षेत्रों में ट्रैकिंग का जितना रोमांच है, उतना ही जोखिम भी। बावजूद इसके हिमालय में नियमों को ताक पर रखकर ट्रैकिंग कराई जा रही है। यहां तक कि उच्च हिमालय की ट्रै¨कग करने वालों की जानकारी प्रशासन के पास तब आती है, जब कोई अनहोनी घटना पर रेस्क्यू की जरूरत महसूस होती है। हालांकि, अब जिला प्रशासन अनुमति देने वाले विभागों और ट्रैकिंग एजेंसियों को पत्र लिख रहा है। ताकि उच्च हिमालय में जाने वाले ट्रैकिंग दलों की पूरी सूचना प्रशासन और आपदा प्रबंधन के पास उपलब्ध रहे।

उत्तरकाशी जिला ताल, बुग्याल (मखमली घास के मैदान) और उच्च हिमालय की ट्रै¨कग व पर्वतारोहण के लिए खास पहचान रखता है। ट्रै¨कग और पर्वतारोहण के लिए तो हर वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। इनमें पर्वतारोही तो प्रशिक्षित होते हैं, लेकिन समुद्रतल से 3500 मीटर की ऊंचाई वाले ट्रैकों पर ज्यादातर ट्रै¨कग मानकों को ताक पर रखकर होती है। हाल ही में गो¨वद वन्य जीव विहार में भड़ासू पास और सांकरी यमुनोत्री ट्रैक पर घटी दो घटनाओं को ही लें। इनकी सूचना जब प्रशासन के पास पहुंचती है, तब आपदा प्रबंधन व प्रशासन ट्रै¨कग एजेंसियों और अनुमति देने वाले विभाग से पड़ताल करने लगता है। लेकिन, फिर भी आपदा प्रबंधन को समय पर यह जानकारी नहीं मिल पाती कि पर्यटक दल में कितने पर्यटक शामिल थे, वह कब रवाना हुए, उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं अथवा नहीं और दल में कोई अस्वस्थ पर्यटक तो नहीं है।

बीते सप्ताह भड़ासू पास के निकट फंसे पर्यटक दल के सदस्यों की जानकारी आपदा प्रबंधन को तब मिल सकी, जब छितकुल में आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के जवानों ने पर्यटकों को रेस्क्यू कर निकाल लिया। इससे पूर्व अप्रैल में चाईंशिल बुग्याल में मरे दो पर्यटकों की जानकारी भी प्रशासन को समय पर नहीं दी गई थी। बावजूद इसके लगातार घट रही इस तरह की घटनाओं से न तो प्रशासन सबक ले रहा और न अनुमति देना वाला विभाग ही।

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उच्च हिमालय की ट्रै¨कग करने वाले पर्यटकों की जानकारी समय पर नहीं मिल पाती है। जबकि, इस संबंध में कई बार वन विभाग व गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों को अवगत कराया जा चुका है। साथ ही अनुमति देने से पहले सुरक्षा मानकों की भी पड़ताल नहीं की जा रही है। परेशानी तब होती है, जब कोई अनहोनी घट जाती है और सोचना पड़ता है कि रेस्क्यू टीम को कहां और किस तरह भेजा जाए। इसके लिए दोबारा पत्राचार किया जा रहा है।

-देवेंद्र ¨सह पटवाल, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी, उत्तरकाशी


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