बगोरी और डुंडा के बीच झूल रही जिंदगी
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : जिला मुख्यालय से
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर हर्षिल और यहां से एक किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत बगोरी में इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है। क्षेत्र में हिमपात और यात्रा सीजन बंद होने के कारण यहां के वा¨शदे डुंडा में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अस्थायी निवास नहीं होने के कारण यह लोग खानाबदोश जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
भारत-चीन सीमा से सटे नेलांग और जांदुग में जाड़ भोटिया जनजाति के लोग निवास करते थे। भारत-चीन युद्ध के दौरान वर्ष 1962 में यहां के वा¨शदे बगोरी आ गए और वहां आइटीबीपी की छावनी बना दी गई। इस पर नेलांग से करीब 36 परिवार और जादुंग से करीब 16 परिवार बगोरी में जा बसे। करीब 56 वर्ष का समय बीत चुका है, अभी तक इन लोगों को न तो भूमि प्रतिकर मिला और न ही इन परिवारों का विस्थापन हुआ। आलम यह है कि पांच दशकों से यहां के वा¨शदे ग्रीष्मकालीन पड़ाव में छह माह बगोरी और शीतकालीन पड़ाव के दौरान छह महीने डुंडा में अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
बगोरी प्रधान भवान ¨सह राणा, नारायण ¨सह नेगी, जगत ¨सह राणा और शिवराम ¨सह रावत ने बताया कि बगोरी गांव गंगा ग्राम और पर्यटन ग्राम है। गांव में करीब 350 परिवार रहते हैं, लेकिन इन परिवारों के सदस्य दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कृषि योग्य भूमि नेलांग और जादुंग में है। लेकिन वह भारतीय सेना के अधीन हो गई है। शीतकाल के दौरान बगोरी में अधिक ठंड होने के कारण यहां के लोग डुंडा चले जाते हैं और बाद में ग्रीष्मकाल के दौरान बगोरी चले जाते हैं। यही कारण है कि शीतकाल में यहां बर्फबारी और ठंड होने के कारण सन्नाटा फैल जाता है। कहा जीवन यापन के लिए यहां के वा¨शदे डुंडा में ऊन, भेड़पालक कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। कहा उन्हें अपने जन्मभूमि नेलांग, जादुंग में जाने के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है, जो न्यायोचित नहीं है। कहा इसके लिए कई बार मोदी सरकार को ज्ञापन भेजा जा चुका है। कहा बीते सात नवंबर दीपावली पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर्षिल और बगोरी में सैनिकों और स्थानीय लोगों के साथ दीपावली मनाने आए थे। उस समय प्रधानमंत्री को लिखित और मौखिक रूप से अवगत कराया जा चुका है।