हर्षिल घाटी में छोड़े गए मवेशियों के सामने चारा-पत्ती का संकट, पढ़िए पूरी खबर
हर्षिल घाटी में निराश्रित मवेशी भूख और ठंड की चपेट में आ गए हैं। ये मवेशी स्थानीय ग्रामीणों के हैं जो इन दिनों मवेशियों को खुले में छोड़कर निचले स्थानों को चले गए हैं।
उत्तरकाशी, जेएनएन। हर्षिल घाटी में एक ओर कुदरत ने खूबसूरती की सफेद चादर बिछाई हुई है। वहीं, दूसरी ओर इसी खूबसूरती ने निराश्रित मवेशियों के जीवन को संकट में डाल दिया है। घाटी ने बीते एक माह से बर्फ के आगोश में है और जमीन पर हरियाली का नामो-निशान तक नजर नहीं आ रहा। जिससे हर्षिल घाटी में निराश्रित मवेशी भूख और ठंड की चपेट में आ गए हैं। ये मवेशी धराली, मुखवा व झाला के ग्रामीणों के हैं, जो इन दिनों मवेशियों को खुले में छोड़कर उत्तरकाशी समेत अन्य निचले इलाकों में आ जाते हैं।
भारी बर्फबारी के कारण इन दिनों हर्षिल तक पहुंचना भी पहाड़ लांघने जैसा है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निराश्रित मवेशी हो रहे हैं। दरअसल, हर्षिल घाटी के 95 फीसद ग्रामीण इन दिनों उत्तरकाशी समेत अन्य निचले इलाकों में आए हुए हैं। जबकि, मवेशियों को उन्होंने गांवों में ही खुला छोड़ा हुआ है। जहां बर्फ के कारण जमीन पर कहीं हरी घास नजर नहीं आ रही।
ठंड से बचने के लिए ये मवेशी या तो पेड़ों की आड़ ले रहे हैं या फिर हर्षिल-धराली में होटल व दुकानों के छज्जों की। ऐसे में अगर जल्द इनकी सुध नहीं ली गई तो दर्जनों मवेशी भूख और ठंड से जान गंवा बैठेंगे। बीते वर्ष भी ठंड और भूख से 12 से अधिक मवेशियों की मौत हो गर्ई थी। हैरत देखिए कि पशुपालन विभाग समेत गो संरक्षण का दावा करने वाली संस्थाएं भी इस ओर आंखें मूंदे हुए हैं।
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मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. प्रलयंकर नाथ का कहना है कि ऐसे मवेशियों के लिए भूसा और भेली की व्यवस्था की गई है। यह सामान भटवाड़ी पशु चिकित्सालय में रखा गया है। वहां से कोई भी ग्रामीण इसे रियायती दरों पर अपने मवेशियों के लिए खरीद सकता है।
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