ऊर्जा प्रदेश पर भारी इको सेंसिटिव की शर्तें
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : ऊर्जा प्रदेश की परिकल्पना पर इको सेंसिटिव जोन की शर्ते भारी प
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : ऊर्जा प्रदेश की परिकल्पना पर इको सेंसिटिव जोन की शर्ते भारी पड़ रही हैं, जनता से परियोजनाओं को संचालित करने के वायदे करने वाली सरकारें भी करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी मौन है। हाल ही में उत्तरकाशी की नौ लघु जल विद्युत परियोजनाओं को सरेंडर किए जाने पर तो ये लग रहा है कि इको सेंसिटिव जोन में प्रस्तावित अन्य लघु जल विद्युत परियोजनाओं को कैसे अनुमति मिल सकेगी।
उत्तरकाशी जनपद में परियोजनाओं का इतिहास बड़ा ही पेचिदा रहा है। 600 मेगावाट की बहुप्रतिक्षित लोहारीनाग पाला जल विद्युत पर जब 40 फीसद कार्य हो चुका था तथा 771 करोड़ रुपये भी खर्च हो चुके थे। फरवरी 2009 में यह परियोजना पर्यावरणीय कारणों से स्थगित की गई। इसके साथ 480 मेगावाट की पाला मनेरी जल विद्युत परियोजना पर भी पर्यावरण का चाबुक चला और यह निर्माणाधीन परियोजना भी स्थगित की गई। जबकि नौ मेगावाट की काल्दी गाड, 4.50 मेगावाट की असी गंगा प्रथम, 4.50 मेगावाट की असीगंगा द्वितीय, दो मेगावाट की स्वारीगाड, 3.5 मेगावाट की लिमचागाड लघु जल विद्युत परियोजना दिसंबर 2012 में पर्यावरणीय कारणों से स्थगित की गई। जिसके बाद गंगा घाटी में किसी भी परियोजना पर निर्माण नहीं हुआ। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में नितिन गडकरी ने अपने वायदा किया था कि पर्यावरण कारणों से बंदी पड़ी जल विद्युत परियोजना का निर्माण शुरू कराया जाएगा। लेकिन, बंद पड़ी परियोजनाओं पर निर्माण होने के बजाय सरकार यहां के प्रस्तावित नौ परियोजनाओं को बंद करने जा रही है। भले ही इस मामले में गंगोत्री विधायक गोपाल रावत कहते हैं कि छोटी परियोजनाओं को किसी भी हाल में वे सरेंडर नहीं होने देंगे। साथ ही जो यहां की रन ऑफ द रिवर की बंद पड़ी बड़ी परियोजनाओं को खुलवाएंगे। इसके लिए वे जल्द ही भारत सरकार के पास जाएंगे। 2012 में लागू हुए इको सेंसिटिव जोन के नियमों को भी शिथिल करने की मांग की जाएगी। विधायक ने कहा कि उत्तरकाशी में 25 मेगावाट से छोटी सभी परियोजनाएं भागीरथी की सहायक नदियों पर है। इस लिए इन परियोजनाओं को शुरू कराने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।