गोमुख से हरिद्वार तक गीतों में पिरो रहे गंगा
पर्यावरण प्रेमियों की गंगा के उद्गम गोमुख से लेकर हरिद्वार तक गंगा की आवाज को लोकगीतों में समेटने के लिए चर्चा की।
उत्तरकाशी, [जेएनएन]: पर्यावरण प्रेमियों की बुधवार को मातली में आयोजित बैठक में गंगा के उद्गम गोमुख से लेकर हरिद्वार तक गंगा की आवाज को लोकगीतों में समेटने के लिए सितंबर से शुरू हुए दूसरे चरण पर चर्चा हुई। हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान की पहल पर हुई इस बैठक में मातली, दिलसौड़, अठाली, चिणाखोली, उत्तरकाशी आदि गांवों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। गंगा की आवाज समेटने के लिए प्रथम चरण का अभियान मई व जून में चला था।
बैठक में प्रतिभाग कर रही महिलाओं ने कहा कि वे पेड़-पौधों व वन्य जीवों के सानिध्य में रहकर पर्यावरण की सेवा करती रही हैं। इसके चलते उनके गीतों में प्रकृति की उपस्थिति परिवार के सदस्यों की तरह है। उन्होंने मन में बसी गंगा व प्रकृति के गीत भी प्रस्तुत किए। इन गीतों में विकास के नाम पर हो रहे विनाश से प्रभावित पेड़-पौधों पर बसेरा करने वाले दुर्लभ परिंदों, मसलन घुघूती की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी गई। साथ ही गंगा के बदलते स्वरूप और उसके प्रति अपनी चिंता को भी गीतों में बयां किया गया।
हिमालय सेवा संघ के मनोज पांडेय व उत्तरकाशी जन जागृति संस्थान के अरण्य रंजन ने कहा कि गीतों के संकलन के इस कार्य को दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो. अंजलि कपिला के संयोजन में संपादित किया जा रहा है। इसमें अब तक लगभग 50 गीतों का संग्रह हो चुका है। कार्यक्रम संयोजक सुरेश भाई ने कहा कि देश में गंगा की अविरलता की भांति गंगा की आवाज यहां के लोकगीतों में समेटने का कार्य भविष्य की पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगा।
प्रो. अंजलि कपिला ने बताया कि गंगा के गीतों को समेटने का कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए अध्ययन दल का गठन किया गया है। जो गंगा तट पर बसे गांव रैथल व बार्सू में लोगों से गंगा से जुड़े लोकगीत एकत्रित कर रहा है। इससे पहले हर्षिल व मुखवा में भी गंगा की आवाज को सुना गया था।
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