गंगा समेत तमाम नदियों में डाला जा रहा मलबा, रोकने के इंतजाम सिर्फ खानापूर्ति
एनजीटी और सड़क परिवहन मंत्रालय के आदेशों के बाद भी नदियों में डाले जा रहे मलबे को रोकने के लिए प्रभावी इंतजाम नहीं हुए हैं।
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सड़क परिवहन मंत्रालय के आदेशों के बाद भी नदियों में डाले जा रहे मलबे को रोकने के लिए प्रभावी इंतजाम नहीं हुए हैं। चारधाम परियोजना निर्माण कंपनियों ने खानापूर्ति के लिए कुछेक स्थानों पर वायरक्रेट बनाई हैं, जो मलबे के साथ ही धराशायी हो रही हैं। यह हाल भागीरथी (गंगा), यमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी सहित छोटी सहायक नदियों तक का है।
भले ही चारधाम परियोजना की हेलीकॉप्टर से निगरानी कर लौटे केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री जनरल (सेनि.) वीके सिंह ने परियोजना का मलबा नदी में न गिरने की बात कही हो, लेकिन 'दैनिक जागरण' की धरातलीय पड़ताल में नदियों में डाले जा रहे मलबे के आगे बेबस तंत्र और खानापूर्ति के इंतजाम ही नजर आए हैं। पहले बात धरासू-यमुनोत्री हाइवे की। इस हाइवे पर सिलक्यारा और पौल गांव के पास बरसाती गदेरों में मलबा डाला जा रहा है। मलबे को रोकने के लिए वायरक्रेट बनाई गई थीं, जो मलबे के गिरते ही टूट गईं।
नतीजा, मलबा फिर गदेरे की ओर बढ़ रहा है, जबकि बरसात में ये गदेरे उफान पर रहते हैं। यमुना किनारे छटांगा के पास भी एक डंपिंग जोन बनाया गया है। यहां भी मलबे से वायरक्रेट टूट गए हैं, जिससे तिलाड़ी शहीद स्मारक को भी खतरा बना हुआ है। भागीरथी नदी की बात करें तो शुरुआत में निर्माण कंपनियों ने नालूपानी और चुंगी बड़ेथी के पास मलबा सीधे भागीरथी में उड़ेला। इस पर एनजीटी ने दो करोड़ और वन विभाग ने दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया, लेकिन स्थिति अभी भी पूरी तरह नहीं सुधरी है।
मलबा थामने के लिए कुछ स्थानों पर वायरक्रेट तो लगाए हैं, लेकिन ये भी मलबा डालते ही धराशायी हो रहे है, जबकि एनजीटी के आदेश के अनुसार डंपिंग जोन नदियों से 500 मीटर दूर होने चाहिएं। अलबत्ता, श्रीनगर और ऋषिकेश के बीच स्थिति कुछ हद तक संतोषजनक है, लेकिन श्रीनगर से आगे रुद्रप्रयाग तक बुरा हाल है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की हाईपावर कमेटी ने भी सवाल उठाए हैं। बावजूद इसके अलकनंदा नदी में गिर रहे मलबे को रोकने के लिए प्रभावी इंतजाम नहीं हुए। सिरोबगड़ बाईपास से खांखरा के बीच कुछ स्थानों पर मलबा रोकने के लिए बनाए गए वायरक्रेट भी टूट चुके हैं।
रुद्रप्रयाग से लेकर कुंड तक की स्थिति भी यही है। यहां मलबा सीधे मंदाकनी नदी के तट तक पहुंच रहा है। जो कभी भी बड़ी आपदा का रूप ले सकता है। खास बात यह कि चारधाम परियोजना के अधिकांश कार्य रात में हो रहे हैं। इसलिए नदियों में मलबा उड़ेल रही निर्माण कंपनियों को न कोई रोकने वाला है, न टोकने वाला ही।
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अपर जिलाधिकारी तीर्थपाल ने बताया कि डंपिंग जोन को लेकर निर्माण कंपनियों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि डंपिंग जोन में पहले दीवार का निर्माण कराएं, जिससे थोड़ा मलबा भी नदी में न जाने पाए। डंपिंग जोन के वायरक्रेट अगर टूट गए हैं तो इस पर कार्रवाई की जाएगी।
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नदी बचाओ आंदोलन के संयोजक सुरेश भाई का कहना है कि उत्तराखंड में चारधाम परियोजना के तहत 889 किमी लंबी सड़क बन रही है। इसका मलबा नदी, नालों और खेतों में डाला जा रहा है। निर्माण कंपनियां पूरी दादागीरी पर उतरी हुई हैं। जहां-जहां मलबा डाला गया है, वहां-वहां भूस्खलन की आशंका बन रही है।
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