आपदा ने घर-आंगन ही नहीं छीने, कमर भी तोड़ डाली
जागरण संवाददाता आराकोट (उत्तरकाशी) आराकोट में आपदा ने ग्रामीणों के घर-आंगन ही न
जागरण संवाददाता, आराकोट (उत्तरकाशी): आराकोट में आपदा ने ग्रामीणों के घर-आंगन ही नहीं छीने, आजीविका का मुख्य जरिया भी छीन लिया। लोगों को यहां इतने गहरे जख्म मिले हैं कि उनके लिए संभलना भी मुश्किल हो गया है। आराकोट सेब के लिए खास पहचान रखता है, पर आपदा ने इस पहचान को ही मिट्टी में मिला दिया, जिससे बागवानों के हाथ रीते हो गए हैं।
आराकोट के 35-वर्षीय सुदेश रावत बताते हैं कि उनका 650 पेड़ों का सेब का बागीचा था और सभी पेड़ फलों से लकदक थे। इस बार उन्हें 15 हजार टन सेब के उत्पादन का अनुमान था और 20 अगस्त से सेब को तोड़ने का कार्यक्रम भी तय था। इसके लिए उन्होंने चंडीगढ़ के आढ़तियों से बात भी की थी, लेकिन आपदा में पूरा बागीचा तबाह हो गया। बागीचे के बीच एक घर भी था, जिसमें गाय बंधी थी। बागीचा के साथ घर का भी कहीं पता नहीं है। इस आपदा ने उनकी आजीविका को जड़ से ही खत्म कर दिया। इसी तरह से मोंडा गांव के अब्बल सिंह चौहान बताते हैं कि आराकोट क्षेत्र में 70 से अधिक बड़े बागीचे भूस्खलन की चपेट में आए हैं। जिससे 500 से अधिक बागवानों की कमर टूट गई है। पहले एक सीजन की फसल खराब होती थी तो बागवान दूसरे सीजन की फसल से संतोष कर लेता था। लेकिन, जब बागीचे ही गायब हो गए तो उम्मीद भी पूरी तरह टूट गई है। कहते हैं सेब के बागीचों को सबसे अधिक नुकसान आराकोट, मोल्डी, मलाना, एराला, नगवाड़ा, चिवां, टिकोची, ढुचाणू, किराणू, खकवाड़ी, माकुड़ी, जागटा, बलाटव आदि गांवों में पहुंचा है।