महिलाओं ने खेली सिंदूर की होली, मां दुर्गा को दी विदाई
शारदीय दुर्गा पूजा दर्पण विसर्जन के साथ दशमी पूजा संपन्न हो गई।
संवाद सूत्र, दिनेशपुर : शारदीय दुर्गा पूजा दर्पण विसर्जन के साथ दशमी पूजा संपन्न हो गई। वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ प्रतिमाओं को स्नान कराया गया। महिलाओं ने मां दुर्गा को विदाई देते हुए एक दूसरे को सिदूर लगाकर खुशी का इजहार किया।
मान्यता है कि दुर्गा पूजा महोत्सव में पांच दिन के लिए देवी कैलाश छोड़कर सपरिवार पृथ्वी पर अपने मायके आती हैं। वहीं दशमी पूजा संपन्न होते ही वापस कैलाश चली जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्गा पूजा महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। नगर के अलावा अन्य आठ स्थानों पर दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया। सभी स्थानों पर दशमी पूजा संपन्न हुई। गुरुवार देर रात तक हल्द्वानी के मेहमान कलाकारों और नगर के स्कूली बच्चों ने भव्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए। उधर, काली नगर में भी दुर्गा पूजा के अवसर पर दशमी पूजा संपन्न होने के साथ दर्जनों महिलाओं ने सिदूर की होली खेली। इस मौके पर नगर पालिका अध्यक्ष सीमा सरकार, सोसायटी चेयरमैन रोहित मंडल, दुर्गा पूजा कमेटी अध्यक्ष मृतुमंज्य सरकार, काजल राय, विजय मंडल, अशोक अग्रवाल, रवि सरकार, सुनीला मंडल, अनादि मंडल, विकास राय, पूजा मंडल, इंद्रजीत मंडल, विकास सरकार, सिखा ढाली मौजूद थे।
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पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श कर खेला जाता है सिदूर कि होली
दुर्गा पूजा महोत्सव समिति के अध्यक्ष मृत्युंजय सरकार ने बताया कि सिदूर खेला बंगाली परंपरा का खास पर्व है। इसकी शुरुआत करीब 450 साल पहले पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में हुई थी। शारदीय दुर्गा महोत्सव की महा दशमी तिथि पर महिलाएं मां दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी का पूजन के साथ ही सिदूर लगाकर मां दुर्गा से सदा सुहागिन रहने का वरदान मांगती हैं। मां दुर्गा को सिदूर लगाने का बड़ा महत्व है। सिदूर को मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि दशमी वाले दिन सभी बंगाली महिलाएं मां दुर्गा को सिदूर लगाती हैं, जिसे 'सिदूर खेला' कहा जाता है। पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग व माथे पर सिदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को मिठाई खिलाकर भोग लगता है। साथ ही सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिदूर लगाकर सदा सुहागिन रहने की कामना करती हैं।