पीएसी में विद्रोह की फाइलें एडीएम दफ्तर से गायब, उठ रहे कर्इ सवाल
31वीं वाहिनी पीएसी में हुए विद्रोह की फाइलें एडीएम वित्त के कार्यालय से गायब हो गई हैं। इसका पता उसवक्त चला जब खुद एडीएम ने मामले का संज्ञान लिया।
रुद्रपुर, [कंचन वर्मा]: छह साल पहले 31वीं वाहिनी पीएसी में हुए विद्रोह की फाइलें एडीएम वित्त के कार्यालय से गायब हो गई हैं। पता तब लगा, जब एडीएम प्रताप सिंह शाह ने लंबित मजिस्ट्रेटी जांचों का संज्ञान लिया। आनन-फानन में फाइलों की तलाश शुरू हुई पर कुछ अता-पता न लगा। इन फाइलों में आरोपी पीएसी जवानों के बयान सहित कई महत्वपूर्ण साक्ष्य थे। अब गुपचुप तरीके से छह साल बाद दोबारा साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं। मजिस्ट्रेटी जांच भी शुरू हो गई है। शनिवार को आरोपित सूबेदार गोपाल बिष्ट के बयान दर्ज किए गए। मजिस्ट्रेटी जांच लंबित होने से इस प्रकरण में दागदार पीएसी जवानों की पदोन्नति भी फंसी है।
31वीं वाहिनी पीएसी में सात सितंबर 2012 को काला अध्याय के रूप में जाना जाता है। इस दिन अनुशासित पुलिस महकमे की गरिमा सड़क पर तार-तार हुई। मामला कार्मिकों की गणना के दौरान पीएसी जवान अख्तर अंसारी से मारपीट का था, जो पीएसी में विद्रोह के रूप में सामने आया। सूबेदारों के खिलाफ पहले पीएसी जवानों ने कमांडेंट अजय रौतेला के आवास के बाहर धरना-प्रदर्शन किया और फिर सुनवाई न होने पर सड़क पर आ गए। रात ढाई बजे तक नैनीताल हाईवे पूरी तरह जाम रहा। इस बीच पेट्रोल से भरे एक टैंकर एचआर 37ए-7085 को कब्जे में ले लिया गया।
तत्कालीन डीएम बीके संत और एसएसपी नीलेश आनंद भरणे के पहुंचने के बाद सशर्त जाम खोला गया था। शर्त रखी गई थी कि जवानों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। आरोपी सूबेदारों का निलंबन किया जाएगा और मामले की मजिस्ट्रेटी जांच कराई जाएगी। अगले ही दिन दोनों सूबेदारों गोपाल सिंह बिष्ट और कैलाश शर्मा को निलंबित कर दिया गया था। जबकि डीएम बीके संत ने मामले की मजिस्ट्रेटी जांच एडीएम वित्त निधि यादव को सौंपी थी। 15 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट एडीएम ने डीएम को सौंपनी थी। लेकिन, मामला व जांच दोनों भूमिगत हो गए।
बात तब खुली, जब मौजूदा एडीएम वित्त प्रताप सिंह शाह ने लंबित मजिस्ट्रेटी जांचों पर निगाह घुमाई। पता लगा कि पीएसी के विद्रोह की फाइलें ही गायब हैं। एडीएम ने इस संबंध में 31वीं वाहिनी पीएसी से भी साक्ष्य मांगे, लेकिन कुछ पता नहीं लगा। अब दोबारा फाइलें तैयार की जा रही हैं।
आखिर क्यों दबाया जाता रहा मामला
बड़ा सवाल यह है कि फाइलें गायब होने के मामले को आखिर दबाया क्यों जाता रहा। आरोपितों पर हाईवे जाम का केस दर्ज क्यों नहीं कराया गया? वर्ष 2015 में तत्कालीन एडीएम वित्त दीप्ति वैश्य ने भी फाइलें गायब होने संबंधी पत्र कमांडेंट पीएसी को भेजा था पर मामले पर परदा डाल दिया गया।
पूर्व के पेशकारों पर हो सकती है कार्रवाई
फाइलें गायब होने के मामले में पूर्व पेशकारों पर कार्रवाई की गाज गिर सकती है। मजिस्ट्रेटी जांच संबंधी फाइलें संभालकर सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी।
साहब, मैं तो निर्दोष हूं
पीएसी में विद्रोह के मामले में शनिवार को आइआरबी हरिद्वार में तैनात सूबेदार गोपाल सिंह बिष्ट ने अपने बयान दर्ज कराए। उसने कहा कि वह निर्दोष है और बेवजह जवान अख्तर अंसारी ने उससे गणना के दौरान मारपीट की थी। अख्तर के समर्थन में पीएसी के जवानों ने हाईवे जाम भी किया पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करते हुए उसी का निलंबन कर दिया गया।
एडीएम वित्त प्रताप सिंह शाह का कहना है कि 31वीं वाहिनी पीएसी से संपर्क कर कुछ कागजात जुटा लिए हैं। मामले की मजिस्ट्रेटी जांच शुरू कर दी गई है। आरोपित जवानों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं।
31वीं वाहिनी पीएसी के सेनानायक मुख्तार मोहसिन का कहना है कि एडीएम वित्त का पत्र हमें मिला था। मामला छह साल पुराना है और यहां से आरोपी जवानों का तबादला हो चुका है तो ऐसे में हमने इस संबंध में 40वीं वाहिनी पीएसी से संपर्क साधा। पता लगा कि जवान वर्तमान में आइआरबी में तैनात हैं तो वहां पत्राचार किया गया।
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