नो-मैंस लैंड पर आबादी का अतिक्रमण
राजू मिताड़ी खटीमा भारत और नेपाल के बीच निशाने सरहद वक्त के साथ मिटते चले जा रहे है।
राजू मिताड़ी, खटीमा
भारत और नेपाल के बीच निशाने सरहद वक्त के साथ मिटते चले जा रहे हैं। दोनों देशों की सीमा के बीच स्थित जमीन (नो-मैंस लैंड) पर हुए पक्के निर्माणों के मार्फत आबादी ने अतिक्रमण कर लिया है। बेधड़क होकर खेती भी की जा रही है। सीमा से लगी वनभूमि पर भी अतिक्रमण से अंतरराट्रीय सीमा का भूगोल बदलने लगा है।
दरअसल दोनों देशों की सीमा पूरी तरह खुली हुई है। सीमा निर्धारण के लिए उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले की नो मैंस लैंड पर सिर्फ 24 पिलर ही लगे थे, जिनमें पांच मेन व 19 सब पिलर थे। बीते दस सालों से नो मैंस लैंड अतिक्रमण की जद में है। रोक-टोक बिना अतिक्रमणकारियों के बुलंद हौसलों के कारण भारत की ओर से 59 तो नेपाल की ओर से 500 से अधिक लोग अतिक्रमण कर यहां खेती कर रहे हैं, घर भी बना लिए गए हैं।
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दोनों तरफ बने घर, खेती भी खटीमा: भारत-नेपाल की नो मैंस लैंड पर अतिक्रमणकारियों का चिह्नीकरण लगभग नौ वर्ष पूर्व किया गया था। तब पिलर नंबर 16-17 पर 39 व 15-16 पर 20 अतिक्रमणकारी पाए गए। दोनों तरफ घर बनने के अलावा बड़ी संख्या में गन्ने व गेहू-धान की खेती की जा रही है।
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बैठक में भी उठा मुद्दा भारत व नेपाल के अधिकारियों के बीच समय-समय पर होने वाली बैठकों में पिलरों के आधार पर सीमा निर्धारण और नो-मैंस लैंड से अतिक्रमण पर भी चर्चा हुई, लेकिन दोनों देशों के ठोस निर्णय बिना अवैध कब्जे बढ़ते गए।
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वर्जन
बनबसा से मेलाघाट तक 18 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है। पहले रोक-टोक न होने से नो मैंस लैंड पर दोनों देशों की ओर फसल और निमार्ण कर अतिक्रमण किया है। सीमा से लगी वनभूमि पर भी अतिक्रमण कर लिया है। इसको लेकर दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बैठक हो चुकी है। अब उच्चाधिकारियों के बीच बैठक होनी है।
-बाबूलाल उपप्रभागीय वनाधिकारी, तराई पूर्व वन प्रभाग