डा. नैने ने खोजा खैरा रोग, धान को किया रोग मुक्त
धान की फसल चौपट कर देने वाले खैरा रोग को पंत विवि के डा. वाईएल नैने ने खोजा था। फसल को इससे छुटकारा भी दिलाया।
जासं, पंतनगर: धान की फसल चौपट कर देने वाले खैरा रोग को पंत विवि के डा. वाईएल नैने ने खोजा था। शोध में पाया कि जिक तत्व की कमी से यह रोग होता है। ऐसे में फसल पर जिक तत्व का छिड़काव किया तो रोग दूर हो गया। इस सफलता की पुष्टि के लिए फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था की एक टीम पंत विवि आई तो टीम ने भी उनके शोध को सही बताया।
गोविद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा अभियान यानी नाहेप भवन में मंगलवार को डा. नैने की 84वीं जयंती पर आयोजित आनलाइन अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह जानकारी दी। इस दौरान एशियन एग्री-हिस्ट्री फाउंडेशन के न्यूज लेटर का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में न्यूयार्क से डा. गजेंद्र सिंह, दिल्ली से पद्मश्री डा. ब्रह्म सिंह, पंत विवि के कुलसचिव डा. जे कुमार, कृषि महाविद्यालय के डीन डा. शिवेंद्र कुमार कश्यप, डा. अजय कुमार उपाध्याय, डा. पीके पांडेय आदि कृषि विज्ञानियों ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने कहा कि धान की फसल में खैरा रोग से फसल चौपट हो जाती थी। भारत के साथ पाकिस्तान सहित कई देशों में इसकी समस्या बनी रही। डा. नैने पंत विवि में वर्ष 1960 में सहायक प्रोफेसर पद पर तैनात हुए। उन्होंने खैरा रोग पर शोध करना शुरू किया तो 60 के दशक में खैरा रोग की खोज की। कृषि महाविद्यालय के डीन डाक्टर शिवेंद्र कुमार कश्यप ने कहा कि डा. नैने ने ऋषि पाराशर की पाराशर संहिता नामक पुस्तक को ढूंढा, फिर खेती विधि का संकलन किया। इसके बाद इसका अंग्रेजी, हिदी व क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया। उन्होंने हैदराबाद में एशियन एग्री हिस्ट्री फांडेशन की स्थापना की, बाद में पंत विवि में स्थापित कर दिया। वर्तमान में डा. नैने के शिष्य डा. बेनीवाल फाउंडेशन के अध्यक्ष व कार्यकारी सचिव डा. सुनीता टी पांडेय हैं। ऋषि सुरपाल की पुस्तक वृक्षायुर्वेद का भी विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया। कई पुरातन ग्रंथों का संकलन किया।