चुनावी प्रबंधन से भाजपा को मिली शानदार कामयाबी
अर¨वद कुमार सिंह काशीपुर: कुशल चुनावी प्रबंधन व व्यवहार कुशल भाजपा प्रत्याशी ऊषा चौधरी
अर¨वद कुमार सिंह
काशीपुर: कुशल चुनावी प्रबंधन व व्यवहार कुशल भाजपा प्रत्याशी ऊषा चौधरी को तीसरी बार शानदार कामयाबी मिली है। भाजपा के विश्वास पर ऊषा खरा उतरी। हालांकि गरीब तबके पर मोदी फैक्टर व मुस्लिम मतदाताओं के पोलराइजेशन होने से भी कुछ ¨हदू मतदाता भाजपा की तरफ घूम गए। एक बार फिर कांग्रेस चुनाव में मात खा गई। कई साल से कांग्रेस जीत का स्वाद नहीं चख पा रही है। इससे कांग्रेस में मायूसी है। नोटबंदी व जीएसटी, महंगाई को जनता ने नकार दिया।
ऊषा चौधरी का स्टार तेज है। नगर निगम की मेयर सीट ओबीसी कर दी गई, मगर भाजपा ने किसी पुरुष के बजाय ऊषा पर विश्वास जताया। हालांकि ऊषा मेयर पद रहते ही यह मानकर चल रही थी कि उन्हें ही टिकट मिलेगा। इसलिए मेयर का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी जनसंपर्क करती रहीं। जगह जगह नुक्कड़ सभा कर लोगों को केंद्र व राज्य की योजनाओं से अवगत कराती रहीं। टिकट के लिए कई लोगों ने दावेदारी की, मगर भाजपा ने उन पर भरोसा जताया। इसके बाद तो उन्होंने चुनावी रणभेरी में कूद पड़ी और एक राजनीतिक चाणक्य की तरह उनके पति हेमेंद्र चौधरी व उद्योगपति अनूप अग्रवाल भी चुनावी समर में जुट गए। बेहतर चुनावी प्रबंधन से विरोधी दल पर भी नजर रखते थे। यह भी पता रखते थे कि उन्हें किस वार्ड में कितने मत मिल रहे हैं, इसके भी आंकड़े जुटाए जाते थे और अगले दिन रणनीति के तहत उस पर काम होता था। यहां बता दें कि इस जीत में चार बार से जीतते आ रहे विधायक हरभजन ¨सह चीमा की भूमिका को नहीं नकारा जा सकता है। इसकी वजह जब नगर निगम सीमा विस्तार हुआ तो ग्राम बैलजूड़ी व सरवरखेड़ा सहित 16 गांव को शामिल करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, मगर जसपुर के विधायक दोनों गांव को निगम में शामिल करने के पक्ष में नहीं थे, इसी तरह यहां के विधायक भी। इसकी वजह यह बताई गई कि दोनों गांव में मुस्लिम मतदाता अधिक है। ऐसे में यदि दोनों गांव निगम में शामिल होते तो यहां का समीकरण कुछ और बदल जाता। जबकि गांव के लोग निगम में शामिल होना चाहते थे। जसपुर के विधायक की विरोध की वजह उनके विधानसभा के मुस्लिम मतदाता कम हो जाते। इससे दोनों गांव का आंशिक हिस्सा निगम में शामिल हुआ। यह भी जीत की वजह मानी जा रही है। निगम में शामिल नए गांवों के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए छह माह से भाजपा ने चुनाव की तैयारी की रखी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में विधायक की मजबूत स्थिति है।यह सीट विधायक की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी थी। हालांकि भाजपा में भी अंदरुनी कलह थी, मगर सफल नहीं हो सकी। माना जा रहा है कि कांग्रेस में भीतरघात की वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। हालांकि कांग्रेस ने जीत के लिए काफी प्रयास किए और काफी हद तक कामयाबी मिली। ऊषा ने आमजनता के साथ शहर में विकास कार्य कराए थे। इस बार कांग्रेस को मेयर सीट पर जीत की काफी उम्मीद थी, मगर यह माना जा रहा है कि कांग्रेस का चुनावी प्रबंधन में कहीं न कहीं कमी रह गई। इस पर गहन मंथन करने की जरुरत है। =========== ऊषा वर्ष 2003 में पहली बार बनी थी पालिकाध्यक्ष
ऊषा वर्ष 2003 में नगर पालिकाध्यक्ष चुनी गई थीं। वर्ष 2008 में भाजपा से खड़ी थी, मगर हार गई थी। वर्ष 2013 में जब उन्हें मेयर पद पर भाजपा से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दल से चुनाव लड़ी और जीत हासिल की। खास बात यह है कि उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, मगर उन्होंने कांग्रेस का दामन नहीं पकड़ा, बल्कि भाजपा में शामिल हो गई।