एनआरसी को लेकर जितने जुबान उतने बोल
-राज्य में करीब साढ़े तीन लाख हैं विस्थापित बांग्लादेशी -यूएस नगर में करीब 1.15 लाख हैं
-राज्य में करीब साढ़े तीन लाख हैं विस्थापित बांग्लादेशी
-यूएस नगर में करीब 1.15 लाख हैं बांग्लादेशी
फोटो:19यूडीएनपी-5,6,7
अरविद कुमार सिंह
रुद्रपुर:एनआरसी राज्य में यदि लागू होता है तो यहां पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है। इसकी वजह यहां पर आजादी के बाद विस्थापितों को खुद ही सरकार ने बसाया था। ऐसे में इनके पास नागरिकता सिद्ध करने के लिए कोई न कोई दस्तावेज उपलब्ध है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक राज्य में करीब साढ़े तीन लाख बांग्लादेशी हिदू हैं। इनमें करीब एक लाख 15 हजार ऊधम सिंह नगर में है। जिले में सबसे पहले दिनेशपुर में बसाया गया था। हालांकि पाकिस्तान विभाजन के बाद यहां बसे बांग्लादेशी हिदुओं को नागरिकता सिद्ध करने में थोड़ी परेशानी हो सकती है। हालांकि सरकार इसके लिए कौन सी तिथि कटऑफ करती है।
देश जब वर्ष 1947 में आजाद हुआ तो इसके बाद अफवाह फैली कि अब बंगाली हिदुओं को मुसलमान बनना पड़ सकता है। इससे घबराए पूर्वी पाकिस्तान से लाखों बांग्लादेशी हिदु भारत में शरण लेने को मजबूर हुए। पश्चिमी बंगाल में शरणार्थियों को ठहराने की जगह नहीं बची तो उन्हें असम, उड़ीसा, त्रिपुरा,कर्नाटक, उत्तर प्रदेश,अंडमान-निकोबार सहित करीब 16 राज्यों में बसाया गया। उत्तर प्रदेश के जमाने में उत्तराखंड शामिल था। ऐसे में पीलीभीत से रुद्रपुर तक फैली तराई में बसाया गया। उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड राज्य बन जाने से रुद्रपुर, दिनेशपुर, सितारगंज क्षेत्र शामिल हो गया है। वर्ष 1951-52 में सबसे पहले दिनेशपुर में हिदु बांग्लादेशी हिदुओं को बसाया गया। इसके बाद रुद्रपुर व सितारगंज, शक्तिफार्म में बसाया गया। सरकार ने खुद विस्थापितों को क्वार्टर, जमीन देकर बसाया। वर्ष1972 में पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो बांग्लादेश में रहने वाले बंगाली हिदु भयभती होने लगे कि हिदुस्तान की वजह से पाकिस्तान का दो फाड़ हो गया है। इसलिए हिदु को मुसलमान जुल्म ढाह सकते हैं। इससे काफी संख्या में बांग्लोदशी हिदु भारत में भागकर आ गए।वर्ष 1972 से पहले आए पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों ने पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों से खेती के गुर सीखे। तराई में वर्ष 1971 के बाद आए बांग्लादेशियों के सामने नागरिकता सिद्व की समस्या आ सकती है, मगर वर्ष 1948-1952 के दौरान आए विस्थापित भारतीय नागरिक हैं। इन्हें पुनर्वास के समय आठ एकड़ जमीन मय रजिस्ट्री हासिल हुई थी। असम में 24 मार्च 1971 से पहले दस्तावेज रखने वालों को नागरिकता मिल सकती है। मगर उत्तराखंड में कौन सी तिथि मानी जाती है, यह अभी तय नहीं है। ऐसे कुछ लोग मान रहे हैं कि यूएस नगर में ढाई से तीन लाख बांग्लादेशी हिदु विस्थापित है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक करीब एक लाख 15 हजार विस्थापित हैं। लोगों का मानना है कि एनआरसी का ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है।
इनसेटराज्य में एनआरसी लागू होती है तो राज्य में जितने राष्ट्र विरोधी तत्व है, उन्हें बाहर निकाला जाए। एनआरसी की आड़ में कोई ऐसा व्यक्ति न पीस जाए तो सच्चा हिदुस्तानी है। राजकुमार ठुकराल, भाजपा विधायक रुद्रपुर
तराई में वर्ष 1950-52 में जो बांग्लादेशी आए थे, उन्हें सरकार ने आठ एकड़ कृषि जमीन दी थी। यह रजिस्टर्ड श्रेणी की है। जो लोग वर्ष 1957 में आए थे, उन्हें शक्तिफार्म में पांच एकड़ जमीन पट्टे (लीज),जो लोग 1964 तक आए उन्हें तीन या पांच एकड़ जमीन बिना रजिस्ट्री की, वर्ष 1970 तक आए लोगों को एक से तीन एकड़ तक भूमि लीज पर मिली। वर्ष 19 71 और इसके बाद आए विस्थापितों को एक इंच भूमि नहीं मिली। ऐस में वर्ष 1971 के बाद आए बंगालियों के सामने नागरिकता सिद्ध करने की समस्या आ सकती है। इसकी वजह
परिचर्चा
एनआरसी मुद्दे पर सरकार की मंशा क्या है,पहले इसे स्पष्ट तो करें। सरकार एक ही लाठी से सभी को हांकना चाहती है। यह कैसे संभव है।तिलकराज बेहड़, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कांग्रेस
यहां पर सरकार ने ही आजादी के बाद ही विस्थापित बांग्लादेशी हिदुओं को बसाया है। वर्तमान में तीसरी-चौथी पीढ़ी रही है, ऐसे में इनमें काफी लोगों के पास पुराने दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। राज्य में एनआरसी का विरोध किया जाएगा। प्रेमानंद महाजन, पूर्व विधायक व कांग्रेस नेता