82 फीसद फसलों में पड़ती मधुमक्खी परागण की जरूरत
पंतनगर में दुनिया की 82 फीसद फसलों को मधुमक्खी-मध्यस्थ परागण की जरूरत होती है।
जासं, पंतनगर : दुनिया की 82 फीसद फसलों को मधुमक्खी-मध्यस्थ परागण की जरूरत होती है। जबकि 35 फीसद मानव भोजन परागण के लिए मधुमक्खियों पर ही निर्भर होता है। इसलिए मधुमक्खी की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। मौन पालन के जरिये आय बढ़ाई जा सकती है।
विश्व मधुमक्खी दिवस 20 मई को है। मधुमक्खी परागण के जरिये विभिन्न फसलों जैसे सरसो में 43, सूरजमुखी में 32-48, कपास में 17-19, प्याज में 93, सेब में 44, तिल में 15,लीची में 20, नारियल में 40 एवं कद्दू वर्गीय में 20 फीसद वृद्धि पाई गई है। परागणकर्ता कीट न केवल खाद्य सुरक्षा में सीधे योगदान करते हैं, बल्कि वह जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। वे आकस्मिक पर्यावरणीय जोखिमों के लिए प्रहरी के रूप में भी काम करते हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य का संकेत देते हैं। कीटनाशक दवाओं का अत्यधिक प्रयोग, गहन कृषि, जलवायु परिवर्तन, भूमि-उपयोग परिवर्तन और एक फसल पद्धति पर आधारित कृषि, उपलब्ध पोषक तत्वों को कम कर मधुमक्खी वंशो के लिए खतरा पैदा करती हैं और हमारे भोजन की गुणवत्ता भी।मधुमक्खी अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण केंद्र पंतनगर द्वारा प्रत्येक वर्ष मधुमक्खी की महत्ता एवं सरंक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। पंत विवि के विज्ञानी डा. पूनम श्रीवास्तव ने बताया कि मधुमक्खी दिवस का उद्देश्य विश्व पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मधुमक्खियों और अन्य परागण कीटों की उपयोगिता को स्वीकार करना है। परागण कीटों का परागण क्रिया द्वारा कई महत्वपूर्ण फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व की एक तिहाई खाद्य फसलें मधुमक्खियों द्वारा ही परागित होती है। उनकी अनुपस्थिति से फसलों की पैदावार बुरी तरह प्रभावित होती है। बताया कि गुरुवार को राष्ट्रीय कार्यशाला गूगुल मीट पर हुई। कार्यशाला में विभिन्न क्षेत्रों के किसान, मधुमक्खी पालक, विद्यार्थी एवं वैज्ञानिक हिस्सा लेंगे।