फल देने लगे हैं अखरोट के दरख्त
आयुर्वेद की मूल संरचना वनस्पतियों से है जिससे सभी को जल जीवन हवा दवा आदि की पूर्ति होती है।
मनीस पांडेय, रुद्रपुर
आयुर्वेद की मूल संरचना वनस्पतियों से है, जिससे सभी को जल, जीवन, हवा, दवा आदि की पूर्ति होती है। ऐसे में जीवन संरक्षण के लिए पौध रोपण सबसे आवश्यक विषय है। राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में चिकित्सक पद पर तैनात डॉ. आशुतोष पंत इसके लिए बीते 32 सालों से प्रयास कर रहे हैं। वह अभी तक करीब दो लाख 85 हजार पौधे वितरित व रोपित कर चुके हैं।
डॉ. आशुतोष पंत चिकित्सक होने के नाते पर्यावरण की आवश्यकता को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। इससे पहले वह हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल आदि जिलों में सेवा के दौरान लोगों से मिल कर पौध रोपण व वितरण का कार्यक्रम करते रहे हैं। वर्तमान में वह हर साल करीब 20 हजार पौधे वितरित करते हैं। जिसके लिए वह अपने वेतन से ही खर्च निकालते हैं। डॉ. पंत वैसे तो सभी फलदार पौधे लोगों को वितरित करते हैं, लेकिन अखरोट के पौधे से उनका खास लगाव है। डॉ. पंत बताते हैं कि अखरोट का पौधा पहाड़ों के लिए वरदान है। इसे चाहे जिस जमीन पर रोप दिया जाए, आसानी से लग जाता है। कहा कि पहाड़ जाने पर कई लोग उन्हें अखरोट के दाने यह कहकर देते हैं कि अब पेड़ से फल आने लगे हैं।
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पर्यावरण बचाने के अभियान को यदि जुनून की तरह नहीं लिया तो आने वाले समय मे बहुत पछताना पड़ेगा। अगर इसी तरह विकास के नाम पर पेड़ो की बलि दी जाती रहेगी तो आने वाली पीढ़ी को सांस लेने के लिये हवा और पीने के पानी को भी तरसना होगा। साल 2040 तक भूमिगत जल समाप्त हो जाएगा तो ये सारा विकास धरा रह जाएगा। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं और बड़ा होने तक उनकी देखभाल भी हो। अखरोट की खेती उत्तराखण्ड की आर्थिकी के लिये वरदान साबित हो सकती है। इस ओर यहां के किसानों को ध्यान देना चाहिए। सरकार को भी इसके लिये प्रयास करने चाहिए कि किसानों को अच्छी प्रजाति के पौधे उपलब्ध हो सकें।
-डॉ आशुतोष पंत, आयुर्वेद चिकित्साधिकारी, ऊधमसिंह नगर